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________________ -बंध के कारण होते हैं। इस गुणस्थान में मोहनीय कर्म की सम्यग्मिथ्यात्वरूप दर्शनमोहनीय कर्म-प्रकृति का उदय है; परन्तु उस निमित्तक भाव नवीन कर्मबंध का कारण नहीं है; अत: इस सम्यग्मिथ्यात्व रूप परिणाम को औदयिक भाव नहीं कहा गया है। (ब) क्षायोपशमिक भाव कहने के कारण - १ . मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी और सम्यक्त्व प्रकृति कर्म के वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय, उन्हीं के आगामीकालीन उन्हीं स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम और जात्यंतर सर्वघाति स्पर्धकमय सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के उदय की निमित्तता में यह भाव होने से इसे क्षायोपशमिक भाव कहा है। २. सम्यक्त्व कर्म - प्रकृति के देशघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय और सदवस्थारूप उपशम होने तथा सम्यग्मिथ्यात्व का उदय होने से इन सभी की निमित्तता में होने वाले भाव को क्षायोपशमिक कहा है। परन्तु ये दोनों अपेक्षाएँ तो बाल- जनों / प्रारम्भिक भूमिकावालों को समझाने के लिए बताई गई हैं; इन्हें सर्वथा स्वीकार नहीं करना चाहिए; कथंचित् ही स्वीकार करना चाहिए। इन्हें सर्वथा स्वीकार करने पर औपशमिक सम्यक्त्व से पतित होने वाले जीव के यह गुणस्थान नहीं बन सकेगा; क्योंकि उस स्थिति में मिथ्यात्वादि प्रकृतिओं का उदयाभावी क्षय आदि नहीं पाया जाता है। दूसरी बात यह भी है कि इन अपेक्षाओं को सर्वथा स्वीकार कर लेने पर सादि मिथ्यात्व गुणस्थान में भी मिथ्यात्व का क्षायोपशमिक भाव मानना पड़ेगा; क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति के उदयाभावी क्षय, सदवस्थारूप उपशम के साथ मिथ्यात्व प्रकृति का उदय होने पर सादि मिथ्यात्व गुणस्थान होता है; परन्तु मिथ्यात्व गुणस्थान में दर्शनमोहनीय कर्म की अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव स्वीकार नहीं किया गया है; अतः उपर्युक्त दोनों अपेक्षाएं बाल- जनों को समझाने के लिए बताई गईं समझना चाहिए ऐसा स्पष्ट उल्लेख आचार्य श्री वीरसेन • तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / १२० —
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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