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उत्तर : ऊपर-ऊपर से देखने पर ये तीनों परिणाम एक समान लगते हैं; परन्तु गहराई से विचार करने पर ये तीनों पृथक्-पृथक् हैं । इन तीनों का पारस्परिक अन्तर इसप्रकार हैविनय मिथ्यात्व
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संशय मिथ्यात्व
मिश्र गुणस्थान
१. इसमें अनिर्णयात्मक इसमें मात्र पुण्य की इच्छा इसमें सम्यग्मिथ्यात्व रूप स्थिति में सभी को समा से अनिर्णयात्मक स्थिति निर्णयात्मक स्थिति है। -न माना जाता है। में ही किसी को भी मान लिया जाता है।
२. इसमें भव्य-अभव्य |इसमें भी भव्य - अभव्य इसमें नियम से भव्य ही दोनों हो सकते हैं। दोनों हो सकते हैं। होते हैं। ३. यह गृहीत मिथ्यात्व है। यह गृहीत मिथ्यात्व है। यह मिश्र परिणाम है। ४. इसका संसार में रहने इसका भी संसार में रहने यह अधिक से अधिक का काल कहा नहीं जा का काल कहा नहीं जा कुछ कम अर्धपुद्गल प सकता है। सकता है। -रावर्तन काल तक ही
संसार में रह सकता है
५. इसे सम्यक्त्व - प्राप्ति इसे भी सम्यक्त्व - प्राप्ति यह तो अति शीघ्र सम्यकुछ कठिन है। कुछ कठिन है। क्त्व प्राप्त कर सकता है। ६. इनमें रहने का काल इनमें रहने का काल अ- इसमें रहने का काल मा अधिक हो सकता है। धिक हो सकता है। -त्र एक अंतर्मुहूर्त है। ७. इसे अपने परोक्षज्ञान इसे भी अपने परोक्षज्ञान इसे अपने परोक्षज्ञान द्वारा सीधे भी जान सकते द्वारा सीधे जान सकते द्वारा सीधे नहीं जान सकते हैं; हम एकमात्र जिनवाणी के आधार से
हैं ।
हैं।
इस गुणस्थान को जान सकते हैं।
८. इससे मिथ्यात्व आदि इससे भी मिथ्यात्व इससे किसी विशिष्ट सभी पाप प्रकृतिओं का आदि सभी पाप प्रकृ- कर्म - प्रकृति का बंध - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ११८.