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________________ ८२ तत्त्वज्ञान तरंगिणी तृतीय अध्याय पूजन है ज्ञान ऊर्जा यदि उर में है पर्यावरण राग वाला । तो जीवन नष्ट हुआ तेरा मिथ्यात्व भाव है दुख वाला || पर पदार्थ से निर्ममत्व हो ये सब शुद्ध सबल कारण । बिन इनके चिद्रूप शुद्ध का ध्यान नहीं होता धारण ॥१२॥ ॐ ह्रीं तृतीय ध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अध्यं नि. । (१३) नृस्त्रीतिर्यक्सुराणां स्थितिगतिवचनं नृतत्यगानं शुधादिक्रीडा क्रोधादि मौनं भयहसनजरारोदनस्वापशोकाः । व्यापाराकाररोगं नुनिनतिकदनं दीनतादुखशंकाः, श्रृंगारादीन् प्रपश्यन्नशनमिह भवे नाटकं मन्यते ज्ञः ॥१३॥ अर्थ- जो मनुष्य ज्ञानी है संसार की वास्तविक स्थिति का जानकार है वह मनुष्य स्त्री तिर्यंच और देवों के स्थिति गति और वचन को नृत्य गान को शोक आदि को क्रीड़ा क्रोध आदि और मौन को भय हंसी बुढ़ापा रोना सोना व्यापार आकृति रोग स्तुति नमस्कार पीड़ा दीनता दुःख शंका भोजन और श्रृंगार आदि को संसार में नाटक के समान मानता १३. ॐ ह्रीं भयहसनरोदनजरादिदोषरहितचिद्रूपाय नमः । निष्क्रोधस्वरूपोऽहम् । ताटंक जग की वास्तिविक स्थिति के जानकार हैं वे ज्ञानी । यह संसार एक नाटक है सत्य मानते अज्ञानी ॥ मनुज त्रियंच देव गति के सुख क्षण भगुर हैं उदयाधीन। हर्ष शोक अरु नृत्य गान सब ही पदार्थ हैं पर आधीन || भोजन अरु अंगार हँसी दुख रोने धोने से परिपूर्ण । वृद्धावस्था नमस्कार स्तुति दीनता सदैव अपूर्ण ॥ एक शुद्ध चिद्रूप पूर्ण है सदा पूर्ण ही रहता है । गुणा जोड़ बाकी व भाग भी सदा पूर्ण ही रहता है ॥१३॥ ॐ ह्रीं तृतीय ध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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