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७२ तत्त्वज्ञान तरंगिणी तृतीय अध्याय पूजन तथा दूसरे जीव तत्व भी मुझको तो हैं केवल ज्ञेय । मेरा अपना जीव तत्व ही मुझको उपादेय है श्रेय ॥
पूजन क्रमांक ४ तत्त्वज्ञान तरंगिणी तृतीय अध्याय पूजन
स्थापना
गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी का यह तृतिय अधिकार है । शुद्ध निज चिद्रूप की ही प्राप्ति शिव सुखकार है | इसे पाने का उपाय महान उर में नित करूं ।
गुण अनंतानंत निज चिद्रूप के पा हित करूं ॥ ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
विधाता निजानंदी स्वजल पाऊं यही आशीष दो स्वामी । जन्म मरणाादि पीड़ा नाश कर बन जाऊं गुण धामी ॥ शुद्ध चिद्रूप का आनंद मेरे मन को भाया है ।
अनंतों गुणों का सागर नाथ अब मैंने पाया है | ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।