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आत्म गुणों की शुद्ध भावना से ही मोक्ष सौख्य मिलता। रत्नत्रय का. तल पाते ही केवल ज्ञान सूर्य खिलता ॥ मिली पावन कृपा कुन्द कुन्द की आज |
... और चेतन को क्या चाहिए | अपना ज्ञान हुआ अपना भान हुआ ।
और चेतन को क्या चाहिए ॥
यह आत्म धर्म है मेरा । शुद्धात्म धर्म है मेरा || परभावों से रहित सर्वथा ज्ञान भाव है मेरा ।
यह आत्म धर्म है मेरा || निज आत्मा का चिन्तन कर मैं मोक्ष मार्ग पर आया । पाकर साम्य भाव रस मैंने जीवन सफल बनाया ॥
मिट चला जगत का फेरा ।
यह आत्म धर्म है मेरा || में हुआ सुसज्जित गुण अनंत से निज महिमा को पाकर। शुद्ध ज्ञान दर्शनधारी हो गया स्वयं को ध्याकर ||
- संयम है मेरा चेरा ।
यह आत्म धर्म है मेरा || अब यथाख्यात ने मोह क्षीण थल मुझे प्रदान किया है। निज अरहंत दशा ने मुझको महा महान किया है |
आया आनंद घनेरा ।
यह आत्म धर्म है मेरा ॥ है आत्म धर्म ही महा मोक्ष फल सबको देने वाला । गुण सिद्धत्व प्रगट करता है सिद्ध बनाने वाला ॥
इस जग में यही अनेरा । यह आत्म धर्म है मेरा ||
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