________________
३७९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान है घोर महा विपरीत बुद्धि है भक्ष्य अभक्ष्य विवेक नहीं । परिणाम विकारी. है हिंसक पापादि भाव से द्वेष नहीं ॥
महाजयमाला
छंद गीत ज्ञान का दीप मिला ज्ञान उर शुद्ध झिला । मोह संताप टला राग पूरा ही गला ॥ आँखें भी तृप्त हुई ज्ञान अभिषिक्त हुई । कली अंतर की खिली पूर्ण आनंद मिला ॥ भाव शुभ भाग गए शुद्ध उर जाग गए । आत्म अनुभव भी मिला शुद्ध पद आन मिला ॥ मोह की रात गई राग की बात गई । सौख्य साम्राज्य मिला ज्ञान रवि कमल खिला ॥ .
गीतिका भावना भवनाशिनी निज बल बिना किस काम की । मात्र भव वर्धक अगर है तो नहीं शिव धाम की ॥ भावना बदनाम करते हैं कुमुनि संसार में । क्रिया आडंबर सहित हैं लीनं हैं व्यवहार में ॥ आत्म घातक भावना से लिप्त हैं तो कुमुनि है । आत्म रक्षा कार्य में जो लीन हैं तो सुमुनि है ॥ सुमुनि ही शिवमार्ग को सम्पूर्ण करते पार है । स्वपद हित सम्पूर्ण सुख के बने वे भंडार हैं | भावलिंगी सुमुनियों को धुन लगी ध्रुवधाम की । भावना भवनाशिनी चिद्रूप विन किस काम की ॥
ताटंक तत्त्वज्ञान की तरंगिणी पा मेरे मन का कमल खिला । तत्त्व ज्ञान की विरुदावलि सुन तत्त्व ज्ञान उर मध्य झिला॥ .