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२७७ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
मोक्ष का मार्ग कभी भी न बंद होता है । वही कहता है जो आगम से अंध होता है !!
(२३)
आदेशोऽयं सद्गुरूणां रहस्यं सिद्धान्तानामेतदेवाखिलानाम् । कर्त्तव्यानां मुख्यकर्त्तव्यमेतत्कार्या यत्स्वे चित्स्वरूपे विशुद्धिः ॥२३॥ अर्थ- अपने चित्स्वरूप में विशुद्धि प्राप्त करना यही उत्तम गुरुओं का उपदेश हैं। समस्त सिद्धान्तों का रहस्य और समस्त कर्त्तव्यों में मुख्य कर्त्तव्य है । २३. ॐ ह्रीं सिद्धान्तरहस्यादिविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । निजधुवरहस्यस्वरूपोऽहम् ।
चिस्वरूप को विशुद्ध करना। गुरु उपदेश ह्रदय में धरता । सब सिद्धान्तों का रहस्य है । कर्त्तव्यों में श्रेष्ठ वश्य है || परम शुद्ध चिद्रूप ध्यान लो । आत्म ज्ञान कर आत्म भान लो । एक शुद्ध चैतन्य स्वरूपी परम शुद्ध चिद्रूप अनूपी ॥ परम शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति श्रम । त्रिभुवन में ये ही सर्वोत्तम ॥२३॥ ॐ ह्रीं ज्ञानभूषणभट्टारकविरचित तत्त्वज्ञानतरंगिण्यां शुद्धचिद्रूपलब्ध्यै विशुद्धयांनयनविधि प्रतिपादक त्रयोदशाध्याये बोधपोतस्वरूपाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
महाअर्घ्य
छंद गीत
कल्याण की इच्छा है तो अनुभव का पियो जाम । शुद्धात्मा के ध्यान से पाओगे ध्रौव्य धाम || आस्रव के भाव दुखमयी भव में डुबाएंगे । इनके अभाव हेतु करो निज को ही प्रणाम ॥ संवर की भावना से जुड़ो निर्जरा के हेतु । कर्मो के पूर्व बंध नष्ट होंगे फिर तमाम ॥ मिल जाएगी फिर मुक्ति की मंज़िल तुम्हें चेतन । भव पार होते ही तुम्हें होगा न कोई काम ॥ जीवंत शक्ति के धनी हो भूल मत करना । अपने को ही पहिचान करो सिद्ध अपना काम ॥