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२१२ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी दशम अध्याय पूजन विध निषेध की समान ज्ञान विधि द्वारा कर्म घटाऊं । रागादिक का निषेध करके वीतराग बन जाऊं ॥
(८) शुभाशुभानि कर्माणि मम देहोऽपि वा मम |
पिता माता स्वसा भ्राता मम जायात्मजात्मजः ||८|| अर्थ- शुभ अशुभ कर्म मेरे हैं। शरीर पिता माता बहिन भाई स्त्री पुत्री पुत्र गाय अश्व बकरी हाथी पक्षी दुकान मकान मेरे हैं और पुर राजा और देश भी मेरे हैं। इस प्रकार का मन में चिंतवन करना ममत्व है। अर्थात् इनको अपनाना ममत्व कहलाता है । ८. ॐ ह्रीं पितामातादिविषयकममत्वरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।
शिवलक्ष्मीस्वरूपोऽहम् ।। कर्म शुभाशुभ मेंरे हैं अरु मात पिता मेरे । बहिन भ्रात सुत सुता अश्व गज धन मंदिर मेरे ॥ जो चिद्रूप शुद्ध का ध्याता वह सुख पाता है ।
जो चिद्रूप शुद्ध ना ध्याता वह दुख पाता है ||८|| ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
गौरश्वो,जो गजो रा विरापणं मंदिरं मम |
पू राजा मम देशश्च ममत्वमिति चिंतनम् ॥९॥ ९. ॐ ह्रीं अश्वगजादिविषयकममत्वरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।
ब्रह्ममंदिरस्वरूपोऽहम् । मेरी नगरी मेरा राज्य अरु मेरा देश विमान । यही चिन्तवन ममत्व कारण दुख की है पहचान || जो चिद्रूप शुद्ध का ध्याता वह सुख पाता है ।
जो चिद्रूप शुद्ध न ध्याता वह दुख पाता है ॥९॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।