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१९९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान । शुद्ध ज्ञान सामर्थ्य प्राप्त कर महा मोक्ष को प्राप्त कर । शुद्ध अनंत चतुष्टय अपने अंतरंग में व्याप्त कर || बहिरे के आगे गीत आदि का गाना । ज्यों ऊसर भू में बोकर अन्न उगाना ॥ बिन प्यासे को जल अभव्य को समझाना । काले वस्त्रों पर के सर रंग चढ़ाना ॥ ऐसे सब कृत्य न कभी कार्यकारी हैं । मन की विडबनाएं हैं दुख कारी हैं | जिसको आत्मा से प्रेम . नहीं होता है । उसको देना उपदेश व्यर्थ होता है ॥ चिद्रूप शुद्ध ही शिव सुख कारी पाऊं ।
आनंद अतीन्द्रिय धारा ह्रदय सजाऊं ॥१७॥ ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागममाय अर्घ्य नि. ।
(१८) . स्मरति परद्रव्याणि मोहान्मूढाः प्रतिक्षणम् ।
शिवाय स्वं चिदानंदमयं नैव कदाचन ॥१८॥ अर्थ- ये मूढ़ मनुष् मोह वश हो प्रति समय पर द्रव्य का स्मरण करते हैं। परन्तु मोक्ष के लिए शुद्ध चिदानंद का कभी भी ध्यान नहीं करते । १८. ॐ ह्रीं परद्रव्यस्मरणरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।
चिदानन्दमयशिवोऽहम् । जो मूढ़ मोह वश पर का सुमिरण करते । चिद्रूप शुद्ध का ध्यान न वे कर सकते ॥ चिदू प शुद्ध ही शिव सुखकारी पाऊं ।
आनंद अतीन्द्रिय धारा ह्रदय सजाऊं ॥१८॥ ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागममाय अर्घ्य नि. ।