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१७७ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान जो वैराग्य बोध देता हो वही धर्म अहंत प्रणीत । वही मोक्ष में ले जाएगा होगा तू संसारातीत ॥ भेद विज्ञान के अतिरिक्त भावना अन्य मत भाना । किन्हीं भी पर पदार्थो में न अपना ध्यान ले जाना ॥ शुद्ध चिद्रूप का विज्ञान अदभुत अरु अलौकिक है ।
शुद्ध चिद्रूप के अतिरिक्त जग में सर्व लौकिक है |॥१३॥ ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(१४) संवरो निर्जरा साक्षात् जायते स्वात्मबोधनात् ।
तद्भेदज्ञानतस्तस्मात्तच्च भाव्यं मुमुक्षुणा ||१४॥ अर्थ- अपने आत्मा के ज्ञान से संवर और निर्जरा की प्राप्ति होती है । आत्मा का ज्ञान भेद विज्ञान से होता है। इसलिये मोक्षाभिलाषी को चाहिये कि वह भेद ज्ञान की ही भावना करें। १४. ॐ ह्रीं संवरनिर्जराविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः |
स्वात्मबोधस्वरूपोऽहम् ।
छंद विधाता निजातम ज्ञान से संवर इसी से निर्जरा होती । निजातम ज्ञान की प्राप्ति भेद विज्ञान से होती ॥ मोक्ष जाने की अभिलाषा जिन्हें हैं वे इसे पाएं । भावना रात दिन करके भेद विज्ञान उर लाएं ॥ शुद्ध चिद्रूप का विज्ञान अद्भुत अरु अलौकिक है ।
शुद्ध चिद्रूप के अतिरिक्त जग में सर्व लौकिक है ||१४॥ ॐ ह्रीं अष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(१५) लब्धा वस्तुपरीक्षा च शिल्पादिसकला कला |
वही शक्तिर्विभूतिश्च भेदज्ञप्ति न केवला ||१५|| अर्थ- इस संसार के अन्दर अनेक पदार्थों की परीक्षा करना भी सीखा। शिल्प आदि