SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी सप्तम अध्याय पूजन ज्ञान भावना का स्वरूप उर सर्व जीव हितकारी है । .. नहीं क्लेशकारी है अणुभर सदा सदा सुखकारी है || प्रकार जो व्यवहार का कार्य समाप्तकर निश्चय की ओर झुकनेवाले हैं और मोक्ष जाना चाहते हैं, उनका मार्ग भिन्न है। और जो व्यवहार मार्ग के अनुयायी है, और स्वर्ग जाना चाहते हैं, उनका मार्ग भिन्न है। ४. ॐ ह्रीं स्वर्गमोक्षविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । सहजानन्दधामस्वरूपोऽहम् । वीरछंद भिन्न भिन्न नगरों को जाने वाले मार्ग सभी है भिन्न । उसी भांति तात्त्विक ज्ञानी का मोक्ष मार्ग है सब से भिन्न॥ जो लौकिक प्राणी स्वर्गो के इच्छुक हैं उनको है भिन्न । जो प्राणी जिस पर चलता है वह पा लेता निज पथ भिन्न॥ परम शुद्ध चिद्रूप शक्ति का मुझको अब विश्वास हुआ | परम ज्ञान का सुमुद्र पाया निज में आज निवास हुआ ॥४॥ ॐ ह्रीं सप्तम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । चिंताक्लेशकषायशोकबहुले देहादिसाध्यात्पराधीने कर्मनिबंधनेऽतिविषमे मार्गे भयाशान्विते । व्यामोहे व्यवहारनामनि गतिं हित्वा व्रजात्मन् सदा शुद्धे निश्चयनामनीह सुखदेऽमुत्रापि दोषोज्झिते ॥५॥ अर्थ- हे आत्मन्! यह व्यवहार मार्ग चिंता क्लेश कषाय और शोक से जटिल है। देह आदि द्वारा साध्य होने से पराधीन है। कर्मो के लाने में कारण है। अत्यन्त विकटंभय एवं आशा से व्याप्त है और व्यामोह कराने वाला है। परन्तु शद्धनिश्चयनय मार्ग में यह कोई विपत्ति नहीं है इसलिये तू व्यवहारनय का त्याग कर शुद्धनिश्चयनय रूप मार्ग का अवलंबन कर। क्योंकि यह इस लोक की क्या बात? परलोक में भी सुख का देने वाला है और समस्त दोषों से रहित निर्दोष है । ५. ॐ ह्रीं चिन्ताक्लेशकषायशोकादिरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । निष्कषायस्वरूपोऽहम् । . -
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy