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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान जीवन में यदि सम्यक्त्व न हो तो संयम ना सुख दायी हैं | जप तप व्रत से आचरण शून्य मानव जीवन दुखदायी है।
पूजन क्रमांक ८ तत्त्वज्ञान तरंगिणी सप्तम अध्याय पूजन
स्थापना
छंद गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी अधिकार सप्तम श्रेष्ठ है । शुद्ध निज चिद्रूप को तो भूलना ही नेष्ठ है। शुद्ध निज चिद्रूप से जब तक ह्रदय जोडूं नहीं । ।
तब तलक व्यवहार सम्यक् हे प्रभो छोडूं नहीं || ॐ ह्रीं सप्तम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं सप्तम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं सप्तम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद मानव संसार जलधि क्षय करने का निश्चय मैंने ठाना । भव पार शीघ्र जाने को सम्यक् जल मिला सुहाना॥ चिद्रूप शुद्ध की महिमा निज अंतरग में लाऊं ।
अब काल लब्धि आयी है तो करणलब्धि भी लाऊं || ॐ ह्रीं सप्तम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।