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१२० तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचम अध्याय पूजन निश्चय व्यवहार मार्ग दोनो इन में से एक ओर सम्यक् । इस पर ही चलना है तुझको करना श्रम पूरा सदा अथक॥
चिद्रूप शुद्ध से परिचय अब तक न कभी कर पाया । . इस को न कभी पहचाना अतएव भ्रमण दुख पाया || चिद्रूप शुद्ध का वैभव मैंने न कभी पाया है ।
अतएव आत्मा मेरा चहुंगति में भटकाया है ॥१२॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(१३) ज्ञातं दृष्टं सर्व सचेतनमचेतनम् ।
स्वकीयं शुद्धचिद्रूपं न कदाचिच्च केवलम् ||१३|| अर्थ- मैंने संसार में चेतन अचेतन समस्त पदार्थो को भले प्रकार देखा जाना। परन्तु केवल शुद्धचिद्रूप नाम का एक पदार्थ ऐसा बाकी बच गया, जिसे कभी मैंने न जाना न देखा। १३. ॐ ह्रीं अन्यसचेतनजीवद्रव्यप्रयोजनरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।
निजशिवधामस्वरूपोऽहम् । जग के चेतन व अचेतन सारे पदार्थ जाने है । संसार मध्य में रहकर देखे हैं पहचाने है ॥ केवल चिद्रूप शुद्ध निज देखा न कभी जाना है । उसकी सत्ता को भी तो मैंने न कभी माना है | चिद्रूप शुद्ध का वैभव मैंने न कभी पाया है ।
अतएव आत्मा मेरा चहुंगति में भटकाया है ॥१३॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(१४) लोकज्ञातिश्रुतसुरनृपतिश्रेयसां भामिनीनायतत्यादीनां वव्यवह्नतिमखिला ज्ञातवान् प्रायशोऽहम् । क्षेत्रादीनामशकलजगतो वा स्वभावं च शुद्धचिद्रूपोऽहं ध्रुवमिति न कदा संसृतौ तीव्र मोहात् ॥१४॥