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११२ तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचम अध्याय पूजन ज्यों पूर्णमासि के दिन समुद्र में आता ज्वार शक्तिशाली। त्यों शुद्ध आत्मा के भीतर आनंद उछलता गुणशाली ॥
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अक्षत हों ज्ञानान्दी। शिव सुख हो परमानन्दी ।
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।
हों पुष्प स्वज्ञानानन्दी। निष्काम बनूं निर्द्वदी ।
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्प नि. ।
ज्ञानानन्दी चरु लाऊं। जय क्षुधा रोग पर पाऊं ।
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।
दीपक हो ज्ञानानन्दी। क्षय हो विभ्रम भव द्वंदी ।
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
निज धूप अपूर्व बनाऊं। वसु कर्मो को विनशाऊं |
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पंद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
फल ज्ञानानन्दी लाऊं। शाश्वत शिव पद प्रगटाऊं ।
चिद्रूप शुद्ध निज ध्याऊं। परमोत्तम शिव पद पाऊं || ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. ।