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४७ शक्तियाँ और ४७ नय
वाला) है। जिसप्रकार नट नित्य एक नटरूप रहकर भी राम-रावणादि के स्वाँगरूप होता रहता है; उसीप्रकार भगवान आत्मा भी नित्य एक आत्मरूप रहकर भी मनुष्यादि पर्यायों को धारण करता हुआ नित बदलता ही रहता है; अतः अनवस्थायी है, अनित्य है ।
तात्पर्य यह है कि भगवान आत्मा नित्यनय से प्रतिसमय अवस्थायी (नित्य) है और अनित्यनय से प्रतिसमय अनवस्थायी (अनित्य ) है | इसप्रकार भगवान आत्मा नित्य ( अवस्थायी) भी है और अनित्य (अनवस्थायी) भी है।
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अनन्तधर्मात्मक भगवान आत्मा के अनन्तधर्मों में परस्पर विरुद्ध प्रतीत होनेवाले नित्य और अनित्य धर्म आत्मा में एकसाथ ही रहते हैं; इसकारण यह भगवान नित्य बदलकर भी कभी नहीं बदलता है और नहीं बदलकर भी नित्य बदलता रहता है।
- यह है कि जिसप्रकार राम-रावण के स्वाँग नट के नपने के विरोधी नहीं, निषेधक नहीं हैं तथा नट का नटपना राम-रावण स्वाँगों का विरोधी नहीं है; क्योंकि वे एकसाथ रह सकते हैं।
जैसे :- नट, राम और नट तो एकसाथ रह सकता है, पर वह राम और रावणरूप एकसाथ नहीं रह सकता है। जब वह राम का वेष धारण करेगा, तब रावण का वेष नहीं धर सकता है और जब रावण का का वेष धारण करेगा, तब राम का नहीं धर सकता है ।
अतः स्वाँग तो परस्पर विरोधी हैं, पर नट और स्वाँग परस्पर विरोधी नहीं हैं। भले ही विरोधी दिखते हों, पर विरोधी हैं नहीं; क्योंकि एक ही काल में यदि हम उसे स्वाँग की अपेक्षा देखेंगे तो राम दिखेगा और स्वाँगधर्त्ता की अपेक्षा देखेंगे तो नट दिखेगा ।
रमेश नामक नट राम का पाठ कर रहा हो, उस समय कोई प्रश्न करे कि 'यह कौन है?' तो इसके एक साथ दो उत्तर दिये जा सकते हैं; कोई हे राम और कोई कहे रमेश। दोनों में से एक भी उत्तर गलत नहीं है;