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________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय रहते हुए मोक्ष नहीं जा सकता है। भरत ने जब चक्रवर्ती पद त्यागकर मुनिदीक्षा ली, तब वे मोक्ष गये। मोक्ष तो भरत मुनि गये, किन्तु भूतपर्याय का वर्तमानपर्याय में आरोप करके यही कहा जाता है कि भरत चक्रवर्ती मोक्ष गये। इसीप्रकार आदिनाथ से लेकर महावीर तक सभी तीर्थंकर वर्तमान में तो सिद्धदशा में हैं; तथापि उन्हें हम आज भी तीर्थंकर ही कहते हैं। भगवान का जन्म कहना भी इसी नय का कथन है, क्योंकि जिस जीव का अभी जन्म हुआ है, वह अभी तो बालक ही है, पर भविष्य में भगवान बननेवाला है; अतः उसे अभी भी 'भगवान' कहने का व्यवहार लोक में प्रचलित है। भगवान आत्मा में द्रव्यधर्म नामक एक ऐसा धर्म है, जिसके कारण आत्मा भूतकालीन और भविष्यकालीन अर्थात् नष्ट और अनुत्पन्न पर्यायरूप कहा जाता है। उस द्रव्य नामक धर्म को विषय बनानेवाले नय का नाम द्रव्यनय है। ... ___ सैंतालीस नयों में पहले नय का नाम भी द्रव्यनय है और इस चौदहवें नय का नाम भी द्रव्यनय है। नाम एक से होने पर भी इन दोनों नयों के स्वरूप में अन्तर है। प्रथम द्रव्यनय के साथ पर्यायनय आया है और इस द्रव्यनय के साथ भावनय आया है। वहाँ द्रव्यनय और पर्यायनय - ऐसा जोड़ा है और यहाँ द्रव्यनय और भावनय - ऐसा जोड़ा है। प्रथम द्रव्यनय का विषय सामान्य चैतन्यमात्र द्रव्य है और इस द्रव्यनय का विषय भूत-भावी पर्यायवाला द्रव्य है। जिसप्रकार द्रव्यनय से भगवान आत्मा भूत और भविष्यकालीन पर्याय के रूप में जाना जाता है; उसीप्रकार भावनय से वह वर्तमानपर्यायरूप से जाना जाता है। इस बात को.आचार्यदेव पुरुष के समान प्रवर्तमान स्त्री का उदाहरण देकर समझाते हैं। जिसप्रकार पुरुष के भेष में रहकर पुरुष के समान व्यवहार करनेवाली स्त्री पुरुष जैसी ही प्रतीत होती है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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