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________________ द्रव्यनय और पर्यायनय बानेवाला, लाल-पीला एवं छोटा-बड़ा भी तो दिखाई देता है। उसीप्रकार यद्यपि द्रव्यनय से भगवान आत्मा चिन्मात्र ही है, तथापि उसमें जाननेदेखनेरूप परिणमन भी तो पाया जाता है। भगवान आत्मा को चिन्मात्र न देखकर, उसमें विद्यमान ज्ञान-दर्शनादिरूप परिणमन को देखकर उसे ज्ञान-दर्शनादिवाला, जानने-देखनेवाला जानना पर्यायनय है; अथवा पर्यायनय से भगवान आत्मा ज्ञान-दर्शनादि मात्र है। इसप्रकार यह निश्चित हुआ कि द्रव्यनय से भगवान आत्मा पटमात्र की भाँति चिन्मात्र है और पर्यायनय से तन्तुमात्र की भाँति दर्शन-ज्ञानादि मात्र है। नय जाननेरूप भी होते हैं और कहनेरूप भी। ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं' - इस परिभाषा के अनुसार नय ज्ञानरूप अथवा जाननेरूप होते हैं तथा 'वक्ता के अभिप्राय को नय कहते हैं' - इस परिभाषा के अनुसार नय कथनरूप होते हैं। ___कथनरूप नयों के अनुसार कथन करने पर इसप्रकार भी कह सकते हैं कि द्रव्यनय से भगवान आत्मा पटमात्र की भाँति चिन्मात्र कहा जाता है और पर्यायनय से उसी भगवान आत्मा को तन्तुवाला की भाँति ज्ञान-दर्शनवाला भी कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि आत्मा को पटमात्र की भाँति चिन्मात्र कहना द्रव्यनय है और तन्तुमात्र की भाँति दर्शन-ज्ञान मात्र कहना पर्यायनय है। भगवान आत्मा अनन्तधर्मों का अखण्ड पिण्ड है। अनन्तधर्मात्मक यह भगवान आत्मा अनन्तनयात्मक श्रुतज्ञानरूप प्रमाण का विषय है। इस अनन्तधर्मात्मक भगवान आत्मा में चैतन्यसामान्य है स्वरूप जिसका, ऐसा एक 'द्रव्य' नामक धर्म भी है। इस द्रव्य नामक धर्म को विषय बनाने वाले नय का नाम ही द्रव्यनय है। इसीप्रकार इस भगवान आत्मा में ज्ञान-दर्शनादिरूप परिणमित होना है स्वभाव जिसका, ऐसा एक पर्याय' नामक धर्म भी है। इस पर्याय नामक धर्म को विषय बनानेवाले नय का नाम पर्यायनय है।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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