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________________ ३४ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय २५. स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति सर्वशरीरेकस्वरूपात्मिकास्वधर्मव्यापकत्वशक्तिः। नियतप्रदेशत्वशक्ति के विवेचन के उपरान्त अब स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति का विवेचन करते हैं - इस पच्चीसवीं स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार दिया गया है - सभी शरीरों में एकरूप रहनेवाली स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति है। यह भगवान आत्मा अपने धर्मों में ही व्याप्त होता है, शरीरादि में नहीं; क्योंकि इसमें स्वधर्मव्यापकत्व नाम की एक शक्ति है। इसके नाम से ही स्पष्ट है कि इसके कारण यह आत्मा स्वधर्मों में ही व्यापक होता है। __यद्यपि यह आत्मा अनादिकाल से अबतक अनंत शरीरों में रहा है। तथापि यह उनमें कभी भी व्याप्त नहीं हुआ; शरीररूप न होकर सदा ज्ञानानन्दस्वभावी ही रहा है। यह भगवान आत्मा इस स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति के कारण अपने अनंत गुणों में, धर्मों में, शक्तियों और निर्मलपर्यायों में तो व्यापता है; पर शरीरों और रागादि विकारी परिणामों में व्याप्त नहीं होता। रागादि होते हुए भी, शरीरों में रहता हुआ भी उसमें व्याप्त नहीं होता, स्वसीमा में ही रहता है॥२५॥ इसप्रकार स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति का निरूपण करने के उपरान्त अब साधारण-असाधारण-साधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति का निरूपण करते हैं - इस छब्बीसवीं साधारण-असाधारण-साधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - स्व और पर - दोनों में परस्पर समान, असमान और समानासमान
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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