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________________ २० ४७ शक्तियाँ और ४७ नय दर्पण पर नहीं पड़ता; इनके झलकने से उसमें किसी भी प्रकार की विकृति नहीं होती। उसीप्रकार इस भगवान आत्मा के स्वच्छत्वस्वभाव में सम्पूर्ण लोकालोक झलकें तो आत्मा पर कुछ बोझा नहीं पड़ता, कुछ विकृति नहीं आती; क्योंकि वे पदार्थ उसके जानने में तो आते हैं, पर उसमें प्रवेश नहीं करते, उसके पास भी नहीं फटकते। न तो परपदार्थ आत्मा में आते हैं और न आत्मा ही उन्हें जानने के लिए उनके पास जाता है। न तो उन ज्ञेय पदार्थों के कारण आत्मा की स्वाधीनता पर ही कुछ फर्क पड़ता है और न ही आत्मा के जानने के कारण उन ज्ञेय पदार्थों की स्वतंत्रता ही बाधित होती है । जब इस स्वच्छत्वशक्ति का पूर्ण निर्मल परिणमन होता है; तब सारा लोकालोक आत्मा में झलकता है और जब अल्प निर्मलता होती है, तब पदार्थ कुछ अस्पष्ट झलकते हैं; पर झलकते तो हैं ही । इसप्रकार यह स्वच्छत्वशक्ति आत्मा के उस निर्मल स्वभाव का नाम है कि जिसमें लोकालोक प्रतिबिम्बित होता है ऐसा होने पर भी वह निर्भार ही रहता है, स्वाधीन ही रहता है; लोकालोक के झलकने से उसकी सुख-शान्ति में कोई बाधा नहीं आती । - इस स्वच्छत्वशक्ति का रूप सभी गुणों में है; इसकारण सभी गुण स्वच्छ हैं। ज्ञान स्वच्छ है, श्रद्धा स्वच्छ है, चारित्र स्वच्छ है, सुख स्वच्छ है। अरे भाई ! सभी गुणों के साथ-साथ यह भगवान आत्मा भी स्वच्छ है। जब यह स्वच्छत्वशक्ति पर्याय में परिणमित होती है तो इस शक्ति का रूप सभी अविकारी पर्यायों में होने से वे भी स्वच्छतारूप परिणमन करती हैं। ज्ञेयों के कारण ज्ञान रंचमात्र भी विकृत नहीं होता - यह सब इस स्वच्छत्वशक्ति का ही प्रताप है । द्वादशांग के पाठी इन्द्रादि जैसे लोग स्तुति करें तथा कोई हजारों गालियाँ देवें- दोनों बातें ज्ञान की ज्ञेय बनें, फिर भी स्तुति करनेवालों के प्रति राग न हो और गालियाँ देनेवालों के प्रति
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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