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दृशिशक्ति और ज्ञानशक्ति
३-४. दृशिशक्ति और ज्ञानशक्ति अनाकारोपयोगमयी दृशिशक्तिः, साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्तिः। ज्ञेयपदार्थों के विशेषरूप आकारों में उपयुक्त होती है; वह ज्ञानोपयोगमयी ज्ञानशक्ति है।
ध्यान रहे, यहाँ शक्तियों का प्रकरण होने से सामान्य अवलोकनरूप दर्शन गुण को दृशिशक्ति और विशेष जाननेरूप ज्ञानगुण को ज्ञानशक्ति कहा गया है। - इसप्रकार जीवत्वशक्ति में यह बताया था कि यह आत्मा त्रिकाल अपने चेतनप्राणों से जीवित रहता है और चितिशक्ति में यह बताया था कि वह जड़रूप नहीं होता तथा अब इन दृशिशक्ति और ज्ञानशक्ति में यह बताया जा रहा है कि आत्मा का वह चेतनस्वरूप सामान्यग्राही दर्शनोपयोग और विशेषग्राही ज्ञानोपयोगरूप है।
यह भगवान आत्मा लक्ष्यरूपजीवत्वशक्ति, लक्षणरूपचितिशक्ति और चितिशक्ति केही विशेष देखने-जाननेरूपउपयोगमयी दृशिशक्ति और ज्ञानशक्ति से सम्पन्न होता है। . इस भगवान आत्मा को जीवत्वशक्ति के कारण जीव, चितिशक्ति के कारण चेतन और ज्ञान व दृशिशक्ति के कारण ज्ञाता-दृष्टा कहा जाता है। इसप्रकार हम देखते हैं कि हमारे मूल प्रयोजनभूत जीवतत्त्वरूप भगवान आत्मा का स्वरूप अब धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है।॥२-३॥
जीवत्व, चिति, दृशि और ज्ञानशक्ति की चर्चा करने के बाद अब सुखशक्ति की चर्चा करते हैं - . सुखशक्ति का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र आत्मख्याति में लिखते हैं - अनाकुलता लक्षणवाली सुखशक्ति है। ..
यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि सभी प्राणी सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। यही कारण है कि प्रत्येक आत्मार्थी के लिए अनाकुलत्व