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पृष्ठभूमि ____२. दूसरी बात यह है कि अनंत गुणों का अखण्ड पिण्ड होने के आधार पर आत्मा को सुखमात्र, वीर्यमात्र आदि न कहकर ज्ञानमात्र इसलिए कहा गया है कि ज्ञान आत्मा का अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव - इन तीनों दोषों से रहित निर्दोष लक्षण है; आत्मा की पहिचान का चिह्न है। ___ यहाँ एक प्रश्न सहज ही उपस्थित होता है कि यह भगवान आत्मा अनंत शक्तियों का संग्रहालय है; इसमें अनन्त शक्तियाँ उछलती हैं; तो वे अनन्त शक्तियाँ कौन-कौन सी हैं ?
अरे भाई ! क्या अनन्त को भी गिनाया जा सकता है ? न सही अनन्त, पर कुछ तो बताइये न !
इसी प्रश्न के उत्तर में आगे ४७ शक्तियों की चर्चा की गई है; जो इसप्रकार है
१.जीवत्वशक्ति २.चितिशक्ति ३.दृशिशक्ति ४.ज्ञानशक्ति ५.सुखशक्ति ६. वीर्यशक्ति७. प्रभुत्वशक्ति ८. विभुत्वशक्ति ९.सर्वदर्शित्वशक्ति १०.सर्वज्ञत्वशक्ति११.स्वच्छत्वशक्ति१२.प्रकाशशक्ति१३.असंकुचितविकासत्वशक्ति १४.अकार्यकारणत्वशक्ति १५. परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति१६.त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति १७.अगुरुलघुत्वशक्ति१८.उत्पादव्यय-ध्रुवत्वशक्ति१९.परिणामशक्ति २०.अमूर्तत्वशक्ति २१.अकर्तृत्वशक्ति २२.अभोक्तृत्वशक्ति २३. निष्क्रियत्वशक्ति २४.नियतप्रदेशत्वशक्ति २५. स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति २६. साधारण-असाधारण साधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति २७. अनन्तधर्मत्वशक्ति २८. विरुद्धधर्मत्वशक्ति २९. तत्त्वशक्ति ३०.अतत्त्वशक्ति ३१.एकत्वशक्ति ३२. अनेकत्वशक्ति ३३.भावशक्ति ३४.अभावशक्ति ३५. भाव-अभावशक्ति ३६.अभावभावशक्ति ३७.भाव-भावशक्ति ३८.अभाव-अभावशक्ति ३९.भावशक्ति ४०. क्रियाशक्ति ४१. कर्मशक्ति ४२. कर्तृत्वशक्ति ४३. करणशक्ति ४४. सम्प्रदानशक्ति ४५.अपादानशक्ति४६.अधिकरणशक्ति ४७.संबंधशक्ति।
यद्यपि प्रत्येक शक्ति का स्वतंत्ररूप से अनुशीलन अपेक्षित है;