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________________ 54 नय-रहस्य उत्तर - उक्त प्रश्न में व्यवहारनय और निश्चयनय के तीन विरोधी कथन प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें प्रतिपाद्य-प्रतिपादकपना निम्नलिखित अनुसार समझा जा सकता है - . अ. व्यवहारनय अभेद वस्तु में गुण-पर्यायों के भेद करके भी उसी वस्तु को बताता है, जिसमें वे गुण-पर्यायें हैं अर्थात् वह भेद करके अभेद का प्रतिपादन करता है। __ब. व्यवहारनय, देह और जीव को एक कहकर भी मनुष्य-देह में रहनेवाले जीव को तथा जीव की संयोगी पर्याय को बताकर भी जीव का ही प्रतिपादन करता है। स. इसीप्रकार व्यवहारनय, शुभभाव को मुक्ति का मार्ग कहकर । भी उस शुभराग के साथ रहनेवाले वीतरागभाव का ज्ञान कराता है; क्योंकि वीतरागभाव के बिना मात्र शुभभाव और बाह्य-क्रिया को मोक्षमार्ग नहीं कहा जाता। वीतरागता के साथ होनेवाले शुभभाव और बाह्य-क्रिया को ही उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाता है, क्योंकि साधक दशा में होनेवाले वीतरागभाव को शुभ क्रियाओं के माध्यम से ही समझा जा सकता है, इसलिए शुभभाव के माध्यम से वीतरागी परिणति का ज्ञान कराया जाता है। इसप्रकार शुभभाव को मोक्षमार्ग कहकर वीतरागभाव का प्रतिपादन किया जाता है। जहाँ व्यवहारनय से कथन किया गया हो, वहाँ ‘ऐसा है नहीं निमित्तादि की अपेक्षा उपचार से कथन किया गया है' - इसप्रकार व्यवहारनय का ग्रहण करना चाहिए - ऐसा निर्देश पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक, अध्याय 7, पृष्ठ 251 पर दिया है। इस पद्धति से अर्थ करने पर भी व्यवहार, परमार्थ का ही प्रतिपादन करता है। निश्चय-व्यवहारनय के प्रयोगों का मर्म समझने के लिए निम्न ' चार बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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