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________________ नय-रहस्य जीव . | उदाहरण | गलत मान्यता | सही मान्यता घी का घी को निश्चय और घड़े - घड़ा । घड़ा को व्यवहार मानना अथवा मिट्टी का कहना . घी का कहना घड़े को निश्चय और घी | (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण) को व्यवहार मानना। मनुष्य जीव को निश्चय और शरीर । - जीव -1 को व्यवहार अथवा शरीर शरीर से भिन्न मनुष्य, देवादिरूप को निश्चय और जीव को चैतन्य स्वरूप है। कहा गया है। व्यवहार समझना। (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण) पंचेन्द्रिय पाँच इन्द्रियों को निश्चय| -शरीर/इन्द्रियाँजीव या व्यवहार समझना। पुद्गल कहना जीव कहना | (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण) वीतरागता वीतराग पर्याय को निश्चय| -मोक्षमार्ग - ही मुक्ति और व्रत-शील-संयम को वीतरागभाव व्रत-शील-संयम का मार्ग है। व्यवहार मानना। . (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण)| मुझे बहुत मैं (आत्मा) को निश्चय ।-क्रोध । क्रोध आता और क्रोध को व्यवहार आत्मा का विकारी गाली सुनने से समझना। परिणाम है। क्रोध आया। | (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण) इसप्रकार विभिन्न कथनों में यथार्थ व उपचरित निरूपण में निश्चय-व्यवहार घटित करना चाहिए। उपर्युक्त तालिका में दिये गये प्रयोगों के अतिरिक्त 'वस्तु एक, निरूपण दो' - इस सूत्र को समझने के लिए निम्न प्रयोग भी ध्यान देने योग्य हैं - - आत्मा (यथार्थ निरूपण) (उपचरित निरूपण) चैतन्यस्वरूप है। मनुष्य है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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