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निश्चयनय और व्यवहारनय नयों के मूलभेद निश्चय-व्यवहार हैं - ऐसा निष्कर्ष प्रतिफलित होने के बाद इनके विषय में विस्तार से चर्चा करने का समय आ गया है।
आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी द्वारा उद्घाटित तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार के कारण दिगम्बर जैन समाज में निश्चय-व्यवहार की चर्चा भी बहुत होने लगी है; परन्तु अभी भी इनके स्वरूप, प्रयोग और प्रयोजन के बारे में गहन और व्यवस्थित चिन्तन के अभाव में अनेक भ्रान्तियाँ विद्यमान हैं, जिससे संघर्ष और वैमनस्य भी होता रहता है। यहाँ तक कि श्रावक, विद्वान और अनेक साधु-सन्त-भी निश्चयवाले और व्यवहारवाले कहे जाते हैं।
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा आत्मधर्म एवं वीतराग-विज्ञान मासिक पत्रिका में लिखे गये सम्पादकीय लेखों में तथा इनके संकलनस्वरूप परमभावप्रकाशक नयचक्र जैसी कृतियों में किये गये सन्तुलित विवेचन से यद्यपि वर्तमान में अनेक भ्रान्तियाँ प्रक्षालित होने लगी हैं, तथापि निश्चय-व्यवहार के सम्बन्ध में और अधिक स्पष्ट, व्यवस्थित और गहन विवेचन की आवश्यकता प्रतीत होती है, ताकि सामाजिक शान्ति के साथ-साथ आत्मकल्याण की दिशा में भी प्रयास वृद्धिंगत हो सके; अतः निम्नलिखित छह बिन्दुओं के आधार से निश्चय-व्यवहार का विवेचन प्रस्तुत करते हैं -