________________
379
सप्तभंग है या अन्यत्र भी हो सकता है?
उत्तर - इस सन्दर्भ में तत्त्वार्थराजवार्तिक, अध्याय 1, सूत्र 6 के वार्तिक में आचार्य अकलंकदेव लिखते हैं -
इसप्रकार यह सप्तभंगी जीवादि सभी पदार्थों में और सम्यग्दर्शनादि सभी पर्यायों में द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक की विवक्षा से लगाना चाहिए। ___ यदि कोई कहे कि अनेकान्त पर उक्त सप्तभंगी घटित नहीं होने से अव्याप्ति दोष होगा तो उसका यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अनेकान्त पर भी उक्त सप्तभंगी घटित होती है। __इस पर यदि कोई कहे कि सप्तभंगी-सम्बन्धी विधि-निषेध की कल्पना, ‘अनेकान्त' पर घटित नहीं हो सकती; क्योंकि यदि अनेकान्त की नास्ति (निषेध) स्वीकार करेंगे तो एकान्त का दोष आएगा और अनवस्था दोष भी आएगा। इसलिए अनेकान्त में सप्तभंगी व्याप्त नहीं होती है।
उससे कहते हैं कि अनेकान्त पर सप्तभंगी इसप्रकार घटित होती "है - "कथंचित् एकान्त है, कथंचित् अनेकान्त है, कथंचित् एकान्त · व अनेकान्त दोनों हैं, कथंचित् अवक्तव्य है, कथंचित् एकान्त और
अवक्तव्य है, कथंचित् अनेकान्त और अवक्तव्य है तथा कथंचित् एकान्त, अनेकान्त और अवक्तव्य है।"
प्रश्न 14 - दुर्नय सप्तभंगी और दुष्प्रमाण सप्तभंगी किसे कहते
___ उत्तर - वास्तव में दुर्नय सप्तभंगी, सप्तभंगी ही नहीं है। वह तो सप्तभंगी का आभासमात्र है। जब सर्वथा एकान्तरूप अभिप्राय से 'स्याद्' के बिना यदि सप्त भंगों का प्रयोग किया जाए तो दुर्नय सप्तभंगी कहा जा सकता है।