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________________ नय - रहस्य प्रश्न 10 मात्र पहले और दूसरे भंग को वस्तु का धर्म मानना चाहिए, शेष भंगों को नहीं; क्योंकि वे तो मात्र क्रमशः या युगपत् कथन की अपेक्षा कहे गये हैं ? 378 उत्तर जिसप्रकार 'पट' शब्द 'प' और 'ट' - इन दोनों वर्णों से भिन्न अर्थ का वाचक है, उसीप्रकार तृतीय - चतुर्थादि भंग भिन्नभिन्न अर्थों के वाचक हैं। प्रश्न 11- तीसरे और चौथे भंग में कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि क्रम और अक्रम का भेद शब्दों के आधार से होता है, वस्तु के आधार से नहीं ? उत्तर तीसरे भंग में अस्तित्व - नास्तित्व उभयरूप धर्म की प्रधानता है, जबकि चौथे भंग में उन दोनों धर्मों को एक साथ नहीं कह सकते - यह कहा गया है। यही इन दोनों में अन्तर है । जिसप्रकार पेय (शरबत) में दही, गुड़, इलायची, काली मिर्च, नागकेसर आदि के स्वाद की अपेक्षा विलक्षण स्वाद होता है, लेकिन उसे कहा नहीं जा सकता; उसीप्रकार तदुभयधर्म (तृतीय) से अवक्तव्यधर्म (चतुर्थ) विलक्षण है। - प्रश्न 12- जिसप्रकार अवक्तव्यधर्म को पृथक् स्वीकार किया गया है, उसीप्रकार क्या वक्तव्यधर्म को भी पृथक्रूप से माना जा सकता है ? उत्तर अस्ति, नास्ति तथा उभयधर्मों के माध्यम से वस्तु वक्तव्य ही है, अतः सामान्यरूप से वक्तव्यधर्म पृथक् नहीं माना गया। यदि कदाचित् वक्तव्य नाम का धर्म स्वतन्त्ररूप से माना भी जाए तो विधि और निषेधरूप से वक्तव्य और अवक्तव्यधर्म की स्वतन्त्र सप्तभंगी प्राप्त होगी । प्रश्न 13 सप्तभंगी का प्रयोग परस्पर विरुद्ध धर्मों में ही होता -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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