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________________ नहीं किया, उन्हें स्पष्ट किया गया है। जैसे - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक निश्चय-व्यवहार के हेतु हैं। 5. नयाभास, पक्षातिक्रान्त तथा आगम और अध्यात्म को अलग अध्यायों में विशेष स्पष्ट किया गया है। 6. विषय को स्पष्ट करने हेतु प्रश्नोत्तर शैली का प्रयोग अधिक किया गया है। 7. स्याद्वाद और अनेकान्त तथा सप्तभंग प्रकरण को प्रश्नोत्तर शैली में स्पष्ट किया गया है। उक्त बिन्दुओं के आधार पर इस कृति को सर्वजनोपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। जैसे-जैसे लेखन कार्य आगे बढ़ता गया, इसे अनेक विद्वानों/मित्रों को दिखाकर, उनके सुझाव जानने के प्रयास भी किये गये। माननीय ब्र. रवीन्द्रजी के समक्ष भी कुछ अंशों का वाचन भी किया गया, जिसमें उनका महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। श्री अश्विनभाई शाह मलाड (मुम्बई) ने भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये। ध्रुवधाम मासिक पत्रिका में इसका नियमित प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जिससे अनेक मित्रों द्वारा प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ। आदरणीय डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ने अत्यन्त व्यस्तता होने पर भी इस कृति के सम्बन्ध में आवश्यक मार्गदर्शन किया एवं मंगल आशीर्वाद प्रदान किया है। अतः उनका चिर ऋणी हूँ। मेरे घनिष्ठ मित्र प्रिय बन्धुडॉ. राकेश जैन, नागपुर ने एंजियोप्लास्टी कराने के बाद स्वास्थ्य-लाभ की परवाह न करते हुए भी इस पूरी रचना को अत्यन्त गहराई से पढ़कर इसका सम्पादन करके इसे इतना परिष्कृत रूप प्रदान किया है, एतदर्थ उनका अनुग्रहीत हूँ। बाल ब्रह्मचारी सुमतप्रकाशजी के सुझाव भी उपयोगी सिद्ध हुए हैं; अतः उनका भी आभारी हूँ। नय-रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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