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________________ लौकिक शिक्षा पूरी होने के तीन वर्ष पश्चात् 24 जुलाई, 1977 को श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय का शुभारम्भ हुआ और स्व. बाबूभाई की प्रबल प्रेरणा तथा डॉ. साहब के व्यक्तित्व का आकर्षण मुझे बलात् जयपुर ले गया। इस क्रान्तिकारी परिवर्तन में परिवार का पूरापूरा सहयोग प्राप्त हुआ। ... इसी स्वर्णकाल में डॉ. साहब की लेखनी, धर्म के दशलक्षण तथा क्रमबद्धपर्याय के पश्चात् परमभावप्रकाशक नयचक्र जैसी कालजयी रचनाओं को जन्म दे रही थी। सौभाग्य से सन 1981 में मेरा जैनदर्शन शास्त्री का अध्ययन पूरा हुआ और उसी समय नयचक्र का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ। इन कृतियों के जन्म के पूर्व गर्भकाल में ही इनका परिचय पाकर मैं धन्य हो गया। स्व. श्री नेमीचन्दजी पाटनी एवं डॉ. साहब का अविस्मरणीय उपकार है कि उन्होंने शास्त्री करने के पश्चात् महाविद्यालय में अध्यापन कार्य का अवसर दिया तथा आत्मख्याति, मोक्षमार्गप्रकाशक आदि ग्रन्थों के साथ-साथ नयचक्र और क्रमबद्धपर्याय का अध्यापन कार्य मुझे सौंपा। कालान्तर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव तथा अन्य धार्मिक प्रसंगों में बाहर जाने से अध्यापन का अवसर क्षीण होने के बावजूद भी नयचक्र और क्रमबद्धपर्याय का अध्यापन अक्षुण्ण रहा। जयपुर में आयोजित शिविर में भी नयचक्र के अध्यापन का सौभाग्य मुझे ही मिला। इसप्रकार जयपुर में इक्कीस वर्ष के अध्ययन-अध्यापन तथा डॉ. साहब के समागम से नयचक्र आदि सभी गहन विषय मेरे ज्ञान में प्रतिष्ठित हो गये और छिन्दवाड़ा तथा देवलाली प्रवास में भी यही कार्य इस मनुष्य जीवन का प्रमुख व्यवसाय बना हुआ है। जयपुर-वियोग के समय तत्कालीन छात्रों एवं अनेक साधर्मियों का प्रबल आग्रह था कि नयचक्र एवं क्रमबद्धपर्याय के अध्यापन में नय-रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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