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सैंतालीस नय परन्तु निमित्त को मुख्य करके और काल को गौण करके कहा जाता है कि आम गर्मी से पके - यही अकालनय का कथन है।
4. अकाल से आशय समय से पहले कार्य हो गया - ऐसा नहीं है। अन्य समवायों को काल से भिन्न ‘अकाल' शब्द से सम्बोधित किया गया है। जरा विचार करें! समय से पहले का क्या अर्थ है ? जब भी कार्य होगा, तब कोई न कोई समय तो होगा ही। तो फिर वह समय पर ही हुआ क्यों न माना जाए? हमने अपनी कल्पना में उस कार्य का कोई समय निर्धारित कर रखा था, उस अपेक्षा हम उसे समय से पहले या विलम्ब से हुआ कह देते है।
इस प्रकरण पर विशेष जानकारी के लिए ज्ञानस्वभाव ज्ञेयस्वभाव, क्रमबद्धपर्याय, क्रमबद्धपर्याय निर्देशिका आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए।
5. कोई कार्य, स्वकाल में हों और कोई कार्य, आगे-पीछे होते हों - ऐसा नहीं है। एक ही कार्य में काल की मुख्यता से कालनय और अन्य समवायों की मुख्यता से अकालनय घटित होता है।
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पुरुषकारनय और दैवनय आत्मद्रव्य, पुरुषकारनय से जिसे पुरुषार्थ द्वारा नींबू का वृक्ष या मधु-छत्ता प्राप्त होता है - ऐसे पुरुषार्थवादी के समान यत्नसाध्य सिद्धिवाला है और दैवनय से जिसे पुरुषार्थवादी द्वारा नीबू का वृक्ष या मधु-छत्ता प्राप्त हुआ और उसमें से जिसे बिना प्रयत्न के ही अचानक माणिक्य प्राप्त हो गया है - ऐसे दैववादी के समान अयत्नसाध्य सिद्धिवाला है। __ 1. भगवान आत्मा की दुःखों से मुक्ति यत्नसाध्य है या