________________
280
नय-रहस्य उक्त कथन से स्पष्ट है कि सभी नय, श्रुतज्ञान के अंश होने से ज्ञानात्मक हैं, द्रव्य-गुण पर्यायात्मक वस्तु के ज्ञाता होने से अर्थात्मक हैं तथा इनके माध्यम से दूसरों को वस्तु-स्वरूप समझाते समय ये वचनात्मक होते हैं।
पंचाध्यायी में पौद्गलिक शब्दों को द्रव्यनय तथा जीव के ज्ञानगुण (पर्यायों) को भावनय कहा गया है।
वस्तुतः जगत् के समस्त पदार्थों का प्रयोग, तीन रूपों में किया जाता है, जिसके आधार पर नयों के इन तीन रूपों को निम्नलिखित उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है - ..
जैसे, गाय नामक प्राणी का प्रयोग तीन रूपों में किया जाता है -
1. शब्दात्मक गाय अर्थात् 'गाय' शब्द 2. अर्थात्मक गाय अर्थात् 'गाय' नामक पशु और 3. ज्ञानात्मक गाय अर्थात् 'गाय' को जाननेवाला ज्ञान।
गाय शब्द कहना या लिखना शब्दात्मक गाय' है, जिसे जाननेवाला ज्ञान, शब्दनय है। 'गाय' शब्द से सम्बोधित किया जानेवाला पशु 'अर्थात्मक गाय' है, जिसे जाननेवाला ज्ञान, अर्थनय है। ज्ञान में झलकनेवाली गाय 'ज्ञानात्मक गाय' है, जिसे जाननेवाला ज्ञान, ज्ञाननय है। इसीप्रकार वस्तु का प्रतिपादन करनेवाले शब्द 'शब्दात्मक वस्तु' हैं। द्रव्य-गुण-पर्यायमयी वस्तु ‘अर्थात्मक वस्तु' है तथा ज्ञान में प्रतिबिम्बित होनेवाली वस्तु 'ज्ञानात्मक वस्तु' है। वस्तु के इन तीनों रूपों को जाननेवाले ज्ञान क्रमशः शब्दनय, अर्थनय और ज्ञाननय हैं। यहाँ इन तीनों नयों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत है -
शब्दनय शब्दनय, वस्तु को प्रतिपादन करनेवाले शब्दों को विषय करता 1. प्रथम अध्याय, श्लोक 5