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नय - रहस्य
पर्यायार्थिकनय, उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक वस्तु के उत्पाद-व्यय को देखने की प्रक्रिया होने से छहों द्रव्यों की पर्यायों पर घटित होता है।
(5+6) कर्मोपाधियाँ तो मात्र जीवद्रव्य की पर्यायों में ही होती हैं; अतः ये दोनों नय, यथायोग्य जीवद्रव्य की पर्यायों में ही घटित होते हैं।
इसप्रकार पर्यायार्थिकनय के इन छह भेदों के माध्यम से पर्याय का स्वरूप गहराई से स्पष्ट जाना जा सकता है। पर्याय की स्वतन्त्रता का यथार्थ निर्णय करके कर्मोपाधियों को भी पर्यायस्वभाव से भिन्न जानकर, अकर्तास्वभाव के अवलम्बन द्वारा स्वानुभव का अपूर्व पुरुषार्थ प्रगट करने में ही इन नयों को जानने की सार्थकता है और यही श्रेयस्कर है।
अभ्यास-प्रश्न
1. पर्यायार्थिकनयों के छह भेदों का स्वरूप और उपयोगिता स्पष्ट कीजिए। 2. क्या पर्यायों को कर्मोपाधि से निरपेक्ष देखने से निश्चयाभास नहीं होगा ? 3. हमारी और अर्हन्त भगवान की पर्याय में समानता किस अपेक्षा से है ?
जिसने परद्रव्यों से निज को, भिन्न जानकर हटा लिया । और विशेषों का समूह, सामान्य मात्र में डुबा दिया ।। उद्धत मोह - लक्ष्मी को, नय-शुद्ध सदा ही लूट रहा । निज उत्कट विवेक से उसने, आत्मरूप को भिन्न किया । । प्रवचनसार कलश, 7