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________________ १३. शुभराग में मोक्षमार्ग का सर्वथा अभाव है, क्योंकि वह परमार्थ से बन्ध का ही कारण है; अतः तत्त्वदृष्टि से उसे मोक्षमार्ग कहना, उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय का कथन भी कहा जा सकता है। १४. अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय आत्मा को देहप्रमाण बताकर तन-मन्दिर में चेतनराज सम्बोधित करता है। १५. यह तथ्य विशेष ध्यान देने योग्य है कि श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र के विषयभूत श्रद्धेय-ज्ञेय-चर्या से सम्बन्ध को भी असद्भूतव्यवहारनय का विषय कहा गया है। १६. यहाँ यह विचारणीय है कि मति-श्रुतज्ञान, अपने विषय को इन्द्रिय-मन की सहायता से जानते हैं; अतः उनका ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध, उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय का विषय कहा जा सकता है तथा अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान, मन-इन्द्रिय-प्रकाश आदि की सहायता बिना पदार्थों को सीधे जानते हैं; अत: ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध, अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय का विषय कहा जा सकता है। १७. पंचाध्यायीकार परवस्तुओं से आत्मा का सम्बन्ध स्थापित करने को नय मानने से इनकार करते हुए उसे नयाभास निरूपित करते है.....क्योंकि देह और आत्मा के संयोग के आधार से उन्हें एक कहने से देह में एकत्व-बुद्धिरूप मिथ्यात्व ही पुष्ट होता है। १८. पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने कण-कण की स्वतन्त्रता तथा अकर्ता ज्ञायक-स्वभाव का जयघोष किया। यद्यपि शुद्धनय-प्रधान शैली होने पर भी उनके प्रवचन में प्रमाण की मर्यादा का कहीं भी उल्लंघन नहीं हुआ है। यदि उन्हें श्रोताओं के व्यावहारिक जीवन में कोई शिथिलाचार नजर आता तो वे उस पर भी जम कर प्रहार करते। 1. नय-रहस्य, पृष्ठ 174 4. वही, पृष्ठ 186 2. वही, पृष्ठ 175 5. वही, पृष्ठ 197 6 3. वही, पृष्ठ 184 . वही, पृष्ठ 204 नय-रहस्य 12
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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