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________________ सम्पादकीय जैन जगत् के दैदीप्यमान क्षितिज पर आज से लगभग १२३ वर्ष पूर्व एक सूर्य उगा, परन्तु उस पर जन्म से ही जैनाभास का ग्रहण लग गया। अपने जीवन के ठीक अर्द्धभाग अर्थात् ४५ वर्ष की उम्र में उन पर से वह ग्रहण दूर हुआ और वे दिगम्बर जैनधर्म की आकाश-गंगा में एक उज्ज्वल नक्षत्र के समान चमकने लगे। कुछ समय में ही उन्होंने सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज को अपने आगोश में ले लिया। चारों तरफ मात्र उन्हीं की चर्चा होने लगी। जहाँ उनके समर्थन में चर्चा चली तो वहाँ वे सर्वोपरि हो गये और जहाँ उनके विरोध में लहर चली तो वहाँ भी एकमात्र उनको ही अपना केन्द्र बनाया गया। उस महा व्यक्तित्व का नाम है - आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी। उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में प्रवाहित आध्यात्मिक व्याख्यानों द्वारा सम्पूर्ण जैन जगत् को अध्यात्ममय कर दिया, अध्यात्म की मानो क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। सोनगढ़-सौराष्ट्र में संचालित आध्यात्मिक शिक्षण शिविरों का एक मुख्य विषय मोक्षमार्ग प्रकाशक के उभयाभासी प्रकरण पर आधारित 'निश्चय-व्यवहारनय' होता था, जिसके माध्यम से नयों के स्वरूप के सम्बन्ध में विस्तृत मीमांसा होती थी। साथ ही समयसार आदि आध्यात्मिक ग्रन्थों पर होने वाले पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनों में भी इन नयों की विस्तृत चर्चा होती थी। पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के पश्चात् उनकी शिष्य परम्परा में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ने परमभावप्रकाशक नयचक्र की रचना करके इस विषय को अत्यन्त व्यवस्थित कर दिया है। इसके साथ ही एक विशेष बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित नय-रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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