________________
84]
[जिनागम के अनमोल रत्न पुण्यशाली का धन नहीं आता।।1429 ।।
निद्रा का त्याग यदि तुम्हें निद्रा सताती है तो स्वाध्याय करो या सूक्ष्म अर्थों का विचार करो अथवा संवेग और निर्वेद को करने वाली कथा सुनो।।1435 ।।
निद्रा को जीतने के लिये पांच प्रकार के परावर्तन रूप संसार का विचार कर भय करो । रत्नत्रय की आराधना में प्रीति करो और पूर्व में किये दुराचरण के लिये शोक करो।।1437।।
जैसे घर में यदि सर्प घुस गया हो तो उसे निकाले बिना सोना शक्य नहीं है, उसी प्रकार जो संसाररूपी महावन से निकलना चाहता है वह दोषों को दूर किये बिना सोने में समर्थ नहीं होता। 1439।।
जलते हुए-घर-की तरह लोक के जन्म, मरण, जरा, व्याधि, शोक, भय, प्रार्थित की अप्राप्ति और इष्ट वियोग इत्यादि आग से जलते रहने पर कौन ज्ञानी निर्भय होकर सोना चाहेगा।।1440।।
जैसे बहुत से शस्त्रधारी शत्रुओं के मध्य में कोई निर्भय होकर नहीं सो सकता, उसी प्रकार संसार को बढ़ाने वाले रागादि दोषों के उपशान्त हुए बिना कौन निर्भय होकर सो सकता है। 1441 ।।
वीर पुरूषों ने जिसका आचरण किया है, कायर पुरूष जिसकी मन में कल्पना भी नहीं कर सकते, मैं ऐसी आराधना करूँगा।।1479 ।।
आपके इस प्रकार के उपदेशामृत को पीकर कौन कायर भी मनुष्य भूख, प्यास और मृत्यु से डरेगा। 1480।।
मैं अधिक क्या कहूँ, आपके चरणों के अनुग्रह से इन्द्रादि प्रमुख देव भी मेरी आराधना में विघ्न नहीं कर सकते । 1481।।
सुमेरू पर्वत अपने स्थान से विचलित हो जाये और पृथ्वी उलट जाये