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[जिनागम के अनमोल रत्न रैनके जगैय्याकौं विलोकि चोर रोस करें,
मिथ्यामती रोस करै सुनत सिद्धंतकौ । हंसकौं विलोकि जैसैं काग मन रोस करै,
अभिमानी रोस करै देखत महंतकौ । सुकविकौं देखि ज्यौं कुकवि मन रोस करै, - त्यही दुरजन रोस करै देखि संतकौं ।।२२।।
पुनः (सवैया इकतीसा) सरलकौं सठ कहै वकताकौं धीठ कहै ,
विनै करै तासौं कहै धनकौं अधीन है। छमीकौं निबल कहै दमीकौं अदत्ति कहैं,
मधुर वचन बोल तासौं कहै दीन है ।। धरमीकौं दंभी निसप्रेहीकौं गुमानी कहैं ,
तिसना घटावै तासौं कहै भागहीन है। जहाँ साधुगुन देखै तिन्हकौं लगावै दोष, .
ऐसौ कछु दुर्जनकौ हिरदौ मलीन है ।।23।।
(मूढ़ मनुष्य विषयोंसे विरक्त नहीं होते) रविकै उदोत अस्त होत दिन दिन प्रति ,
अंजुलिकै जीवन ज्यौं जीवन घटतु है। कालकै ग्रसत छिन छिन होत छीन तन ,
आरे के चलत मानौ काठ सौ कटतु है ।।