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[जिनागम के अनमोल रत्न सूत्रार्थ पद निर्णीत , शमित कषाय तप में अधिक हो । पर छोड़ता न संगति , लौकिकों की , ना मुनि तो ।।268 ।। निर्गन्थ दीक्षा से सहित , संयम व तप संयुक्त हैं । पर रहें ऐहिक कर्म में तो , कहें लौकिक ही उन्हें ।।269।। जो देख दुखित तृषित क्षुधित को, दुखित मन हो दया से । स्वीकार करता है उसे , अनुकम्पा है उस भाव से । अतएव यदि दुख - मोक्ष चाहें , सम गुणों में मुनि रहें । या अधिक गुण सम्पन्न श्रमणों, मध्य में ही नित रहें ।।270। जो पदार्थों को जान, सम्यक् बाह्म अन्तर संग का । कर त्याग,नाआसक्त, विषयों में, उन्हें है शुद्ध कहा ।।273।। है शुद्ध के श्रामण्य, दर्शन-ज्ञान कहते शुद्ध के । है शुद्ध का निर्वाण ,वे ही सिद्ध उनको नमन है ।।274।।
प्रतिदिन जाप करने योग्य सर्वोत्कृष्ट
जाप्य मंत्र 'शद चिद्रपोऽहं' - तत्त्वज्ञान तरंगिणी ग्रंथ में अनेक स्थानों से उद्धत् | 1. ऊँ (एक अक्षर का मंत्र) 2. सिद्ध (दो अक्षर का मंत्र) 3. अरहंत (चार अक्षर का मंत्र) 4. अ सि आ उ सा, नमः (पाँच अक्षर का मंत्र) 5. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अहँ, नमः (सात अक्षर का मंत्र)
अर्थ :- ॐ - पंचपरमेष्ठी, हीं - चौबीस तीर्थंकर भगवंत, श्रीं-केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी के धारी, क्लीं-समस्त गणधर महाराज, अर्ह-अ से ह तक
वर्णमाला की समस्त द्वादशांगमयी जिनवाणी माँ 6. णमोकार महामंत्र (पैत्तीस अक्षर का मंत्र)