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जिनागम के अनमोल रत्न]
[185 हैं और एक की ही परिणति क्रिया होती है, क्योंकि अनेक रूप होने पर भी एक वस्तु है, भेद नहीं।
नौभौ परिणमतः खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत। उभयोर्न परिणतिः स्याद्यदनेकमनेकमेव सदा।।53 ।।
दो द्रव्य एक होकर परिणमित नहीं होते, दो द्रव्यों का एक परिणाम नहीं होता और दो द्रव्यों की एक परिणति क्रिया नहीं होती; क्योंकि जो अनेक द्रव्य हैं सो सदा अनेक ही हैं, वे बदलकर एक नहीं हो जाते।
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ स्तो द्वे कर्मणी न चैकस्य। नैकस्य च क्रिये द्वे एकमनेकं यतो न स्यात्।।54।। .
एक द्रव्य के दो कर्ता नहीं होते और एक द्रव्य के दो कर्म नहीं होते तथा एक द्रव्य की दो क्रियायें नहीं होती, क्योंकि एक द्रव्य अनेक द्रव्यरूप नहीं होता।
आसंसारत एव धावति परं कुर्वेऽहमित्युच्चकै१र्वारं ननु मोहिनामिह महाहंकाररूपं तमः। तद्भूतार्थपरिग्रहेण विलयं यद्येकबारं व्रजेत्,
तत्किं ज्ञानघनस्य बंधनमहो भूयो भवेदात्मनः।।5।। इस जगत में मोही जीवों का 'परद्रव्य को मैं करता हूँ' ऐसा परद्रव्य के कर्तृत्व का महा अहंकार रूप अज्ञानांधकार-जो अत्यंत दुर्निवार है वह अनादि संसार से चला आ रहा है। अहो! परमार्थनय का ग्रहण करने पर यदि वह एक बार नाश को प्राप्त हो तो ज्ञानधन आत्मा को पुनः बन्धन कैसे हो सकता है? .
आत्मभावान्करोत्यात्मा परभावान्सदा परः।
आत्मैव ह्यात्मनो भावाः परस्य पर एव ते।।56।।
आत्मा तो सदा अपने भावों को करता है और परद्रव्य पर के भावों को करता है, क्योंकि जो अपने भाव हैं सो तो आप ही है और जो पर के भाव