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जिनागम के अनमोल रत्न]
__ [129 ण विसिज्झदि वत्थधरो जिणसासणेजइ विहोइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सब्वे ।।23।।
जिन शासन में इस प्रकार कहा है कि वस्त्र को धारण करने वाला सीझता नहीं है, मोक्ष नहीं पाता है, यदि तीर्थंकर भी हो तो जब तक गृहस्थ रहे तब तक मोक्ष नहीं पाता है, दीक्षा लेकर दिगम्बर रूप धारण करे तब मोक्ष पावे क्योंकि नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, शेष सब लिंग उन्मार्ग है।
भावपाहुड़ पीओ सि थणच्छीरं अणंतजम्मतराई जणणीणं।
अण्णाण्णाण महाजस सायरसलिलादु अहिययरं।।18।।
जन्म-जन्म मैं अन्य-अन्य माता के स्तन का दूध इतना पिया कि उसको एकत्र करें तो समुद्र के जल से भी अतिशय कर अधिक हो जावे। यहाँ अतिशय का अर्थ अनन्तगुणा जानना क्योंकि अनन्तकाल का एकत्र किया हुआ दूध अनन्तगुण हो जाता है।
तुह मरणे दुक्खेण अण्णण्णाणं अणेयजणणीणं।
रूण्णाण णयणणीर सायरसलिलाहु अहिययरं।।1।। __ हे मुने! तूने माता के पेट में रहकर जन्म लेकर मरण किया, वह तेरे मरण से अन्य-अन्य माता के रूदन के नयनों का नीर एकत्र करें तब समुद्र के जल से भी अतिशयकर अधिक गुणा हो जावे अर्थात् अनन्तगुणा हो जावे।
भवसायरे अणंते छिण्णुज्झिय केसणहरणालट्ठी। पुञ्जइ जइ को विजए हवदिय गिरिसमधिया रासी।।20।
हे मुने! इस अनन्त संसार सागर में तूने जन्म लिये उनमें केश, नख, नाल, अस्थि, कटे-टूटे उनका यदि कोई देव पुंज करे तो मेरु पर्वत से भी अधिक राशि हो जावे, अनन्तगुणा हो जावे।