SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 118] [जिनागम के अनमोल रत्न स्वरूपोपलब्धि है, परमध्यान ही नित्योपलब्धि है, परमध्यान ही परमानन्द है, परमध्यान ही नित्य आनन्द स्वरूप है, परमध्यान ही सहजानन्द है, परमध्यान ही सदा आनन्दस्वरूप है । परम ध्यान ही शुद्ध आत्मपदार्थ के अध्यनरूप है परमध्यान ही परम स्वाध्याय है, परमध्यान ही निश्चय मोक्ष का उपाय है, परमध्यान ही एकाग्रचिन्ता निरोध है, परमध्यान ही परमबोधरूप है, परम ध्यान ही शुद्धोपयोग है, परम ध्यान ही परमयोग है। परमध्यान ही परम अर्थ है, परमध्यान ही निश्चय पंचाचार है, निश्चय ध्यान ही समयसार है, परमध्यान ही अध्यात्म का सार है, परमध्यान ही निश्चय षट् आवश्यकस्वरूप है, परमध्यान ही निश्चल षट् आवश्यकस्वरूप है, परमध्यान ही अभेद रत्नत्रयस्वरूप है, परमध्यान ही वीतराग सामायिक है, परमध्यान ही उत्तम शरण और उत्तम मंगल है, परमध्यान ही केवलज्ञान की उत्पत्ति में कारण है, परमध्यान ही समस्त कर्मों के क्षय में कारण है, परमध्यान ही निश्चय चार आराधना स्वरूप है, परमध्यान ही परम भावना है, परमध्यान ही शुद्धात्मभावना से उत्पन्न सुखानुभूति स्वरूप उत्कृष्ट कला है, परमध्यान ही दिव्य कला है, परमध्यान ही परम अद्वैतरूप है, परमध्यान ही परमामृत है, परमध्यान ही धर्मध्यान है, परमध्यान ही शुक्ल ध्यान है, परमध्यान ही रागादि विकल्पों से शून्य ध्यान : परमध्यान ही परमस्वास्थ्य है, परमध्यान ही उत्कृष्ट वीतरागता है, परमध्यान ही उत्कृष्ट साम्यभाव है, परमध्यान ही उत्कृष्ट भेद विज्ञान है, परमध्यान ही शुद्धचिद्रूप है, परमध्यान ही उत्कृष्ट समत्व रसरूप है। रागद्वेषादि विकल्पों से रहित उत्तम आह्लाद स्वरूप परमात्मस्वरूप का ध्यान करना चाहिये । - बृहद् द्रव्य संग्रह, गाथा-56 जिन्होंने शुद्ध ध्यान में स्थित होते हुए कर्मों के मल को जला डाला है तथा उत्कृष्ट पद को पा लिया है उन सिद्ध परमात्माओं को नमस्कार करता हूँ । - योगसार, 1
SR No.007161
Book TitleJinagam Ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain, Mukesh Shastri
PublisherKundkund Sahtiya Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy