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श्री रत्नत्रय विधान
श्री सम्यक् चारित्र पूजन
स्थापना
(सोरठा) सम्यक् चारित्र धर्म साम्यभाव मय हो प्रभो। घाति अघाति विनाश कर्म रहित होऊँ विभो ॥ पूर्जे मन वच काय सम्यक् चारित्र धर्म को।
नायूँ आठों कर्म नित्य निरंजन पद मिले ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सम्यकचारित्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री सम्यकचारित्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(मत्तसवैया ) सम्यक् चारित्र नीर पावन चरणों में भेंट चढ़ाऊँगा। जन्मादि रोग त्रय क्षय करके आनन्दगीत निज़ गाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा।
दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा | ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् चारित्रमयी चंदन मस्तक पर नाथ लगाऊँगा। इस भवाताप ज्वर की पीड़ा पूरी ही शीघ्र मिटाऊँगा ॥ मैं स्वपर विवेक पूर्वक प्रभु सम्यक् चारित्र सजाऊँगा।
दृढ़ संयम के रथ पर चढ़कर अविरति सम्पूर्ण हटाऊँगा । ॐ ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
अक्षय स्वभाव मेरा अखंड अक्षत अभेद गुणशाली है। संसार समुद्र नाश को तो निज तरणी ही बलशाली है।