________________
सम्मत्तं सण्णाणं सच्चारित्तं च सत्तवो चेव । चउरो चेट्ठदि आये तम्हा आदा हु मे सरणम् ॥१३॥
सद्ज्ञानं और समदर्शन भी लखे हैं, सच्चा चरित्र तप भी जिसमें बसे हैं। ' आत्मा वही नियमसे समझो कहाता, आत्मा अतः शरण हो मम प्राण त्राता ॥१३।।
सुन, दर्शन, यति, त५ नि मात्मना पर्याय छे; તેથી શરણ મુજ આત્મનું મુજ આત્મને જ સદાય છે. ૧૩
अर्थ- इसी तरहसे आत्मामें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और उत्तम तप ये चार अवस्थाएं भी होती हैं। अर्थात् सम्यग्दर्शनादि आत्माहीके परिणाम हैं, इसलिये मुझे आत्मा ही शरण है।
સમગ્દર્શન, સમ્યજ્ઞાન, સમ્યક્યારિત્ર અને સમ્યક્તપ એ ચાર અવસ્થાઓ પણ આત્માની જ થાય છે, તેથી મારો આત્મા જ મને શરણ છે, તેમ હે જીવ! તું orl.
१८ बारस अणुवेक्खा