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जीवणिबद्धं देहं खीरोदयमिव विणस्सदे सिग्धं । भोगोपभोगकारणदव्वं णिच्चं कहं होदि ॥६॥
लो! क्षीर नीर सम मिश्रित, काय यों ही, जो जीवसे द्रढ बंधा नश जाय मोही । भोगोपभोग अघ-कारण द्रव्य सारे, कैसे भले ध्रुव रहें व्ययशील वाले ॥६।। જે ક્ષીરનીરવત્ એક સ્થળે રહે છે તે દેહ જીવ થઈ શીઘ જુદા બને છે ભોગોપભોગકરણ આ સૌ ભિન્ન દ્રવ્યો
ક્ષણ જીવી જાણી રે રે! તો મોહ ભવ્યો: ૬
अर्थ- जब जीवसे अत्यंत संबंध रखनेवाला शरीर ही दूधमें मिले हुए पानीकी तरह शीघ्र नष्ट हो जाता है, तब भोग और उपभोगके कारण दूसरे पदार्थ किस तरह नित्य हो सकते हैं? अभिप्राय यह है कि, पानीमें दूधकी तरह जीव और शरीर इस तरह मिलकर एकमेक हो रहे हैं कि जुदे नहीं मालूम पडते हैं। परंतु इतनी सघनतासे मिले हुए भी ये दोनों पदार्थ जब मृत्यु होनेपर अलग २ हो जाते हैं, तब संसारके भोग और उपभोगके पदार्थ जो शरीरसे प्रत्यक्ष ही जुदे तथा दूर हैं सदाकाल कैसे रह सकते हैं ?
ક્ષીર નીરવત જીવનિબદ્ધ દેહ શીઘ નાશ પામે છે તો ભોગોપભોગના સાધન બીજા પદાર્થો કેવી રીતે નિત્ય હોઈ શકે?
बारस अणुवेक्खा ११