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________________ (प्रस्तावना) डॉ. हुकमचंद भारिल्ल, पण्डित टोडरमल स्मारक भवन, ए-४, बापुनगर, जयपुर-राज. पण्डित फूलचंद शास्त्री एक सुलझे हुये विचारोंवाले सुप्रसिद्ध आत्मार्थी विद्वान हैं। उन्होंने अपने बल पर अथक परिश्रम करके मुम्बईके आत्मार्थी समाजमें एक अद्वितिय स्थान बनाया है; अनेकानेक लोगोंको न केवल स्वाध्यायके मार्ग पर लगाया है, अपितु जैन तत्त्वज्ञानसे परिचित भी कराया है। वे अपने इस कार्यमें अनन्य निष्ठाके साथ लगे हुये हैं। उन्होंने ‘महावीरका वारसदार कौन?' नामक यह पुस्तक लिखकर भगवान महावीरकी वाणीमें समागत मूल तत्त्वज्ञानको जन-जन तक पहुँचानेका प्रयास किया है। अत्यन्त सरल, सुबोध, प्रवाहमयी भाषा और प्रवचन शैलीमें लिखी यह कृति सामान्य लोगों तक जैन तत्त्वज्ञान पहुँचानेमें सफल होगी - ऐसा मेरा विश्वास है। इसमें उन्होंने अनेक उदाहरणोंके माध्यमसे यह स्पष्ट करनेका प्रयास किया है कि यह जीव मिथ्यात्व और कषायभावोंके कारण संसारमें भटक रहा है और अनन्त दुःख उठा रहा है। यदि यह जीव स्वयंको जाने, पहिचाने और स्वयंमें ही समा जावें तो सहज अनन्त अतीन्द्रिय सुखको प्राप्त कर सकता है। मैं उनके उज्जवल भविष्यकी कामना करता हुआ मंगल आशीर्वाद देता हूँ कि वे भविष्यमें भी इसी मार्ग में लगे रहकर स्व-पर कल्याणमें स्वयंको समर्पित कर दें और अपने लक्ष्यमें सफल हों। १४ सितम्बर, २००८ . - डॉ. हुकमचंद भारिल्ल
SR No.007154
Book TitleMahavirno Varasdar Kon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shastri
PublisherShyam Samadhi Ashram
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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