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है। धर्म्यध्यान शुभभाव है, अतः शुभभाव को भी मोक्षमार्ग में प्रकट होने वाले संवर निर्जरा तत्त्व रूप मानना चाहिए।
जिज्ञासा १६.- मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि जो नवमें प्रैवेयक तक जाते हैं तथा उन्हें ११ अंगों तक का ज्ञान प्रकट हो जाता है क्या उनको आत्मा का विश्वास नहीं होता? क्या उनके संवर-निर्जरा तत्त्व प्रकट होते हैं या नहीं? समाधान नहीं होते । क्यों कि उन्हें विपरिताभिनिवेश रूप मिथ्यात्व का उदय रहता है। मिथ्यात्व रहते हुए व्यवहार सम्यक्त्व रूप आत्म विश्वास संभव नहीं।
जिज्ञासा १७.-धर्म्यध्यान के स्वामी चौथे से सातवें गुणस्थानवी जीव कहे हैं। तब असंयमी सम्यग्दृष्टि के भी चारित्र का अंश प्रकट हुआ होना चाहिए। अन्यथा १६+२५=४१ प्रकृतिया का बध नहीं रुकता? अनतानबधो चारित्रमाह को प्रकति का अनदय/अप्रशस्त उपशम/क्षय ही कारण है। इस चारित्र के अंश का नाम आगम में कहीं कुछ आया हो तो स्पष्ट करें? समाधान-चतुर्थ गुणस्थान में कषाय की एक चौकड़ी का अभाव होता है,परंतु उसे संयम रूप चारित्र नाम नहीं मिलता है। श्री जयधवला १६/४० के अनुसार चारित्र के विषय में अनंतानुबंधी का कार्य यह है कि वह अप्रत्याख्यानावरण आदि के कषायों के उदय प्रवाह को अनंत कर देती है। इसलिए चारित्र में अनंतानुबंधी चतुष्क का व्यापार निष्फल नहीं है, परंतु वह किसी चारित्र का घात नहीं करती। अत: उसके जाने पर कोई चारित्र प्रकट नहीं होता।
आपकी यह धारणा ठीक नहीं है कि बिना चारित्र का अंश प्रकट हुए कर्मप्रकृतियों का बंध नहीं रुकना चाहिए, क्यों कि अभव्य जीव के भी प्रायोग्यलब्धि में ३४ बंधापसरणों में ४६ प्रकृतियों का बंध रुक जाता है। जब कि वहाँ सारी कषायें हैं और चारित्र का अंश भी नहीं है। सासादन गुणस्थान में भी अनंतानुबंधी आदि समस्त कषायों का सद्भाव रहते हुए भी १६ प्रकृतियों का बंध रुक जाता है, तब वहाँ कौनसा चारित्र प्रगट होना मानेंगे। इसलिए यह धारणा उचित नहीं है कि बिना चारित्र का अंश प्रकट हुए कर्मप्रकृतियों का बंध नहीं रुकता।
अनंतानुबंधी के जाने से इतने अंशों में वहाँ कषाय अंश तो घटता है पर उसे शास्त्रों में कोई भी नाम नहीं दिया है। क्यों कि चतुर्थ गुणस्थान तक चारित्र का अंश भी नहीं होता।
जिज्ञासा १८. -समयसार गाथा १३- 'भूटत्थेणाभिगदा...की आत्मख्याति टीका-अंत में- ‘एवमसावेकत्वेनद्योतमानः शुद्धनयोजनानुभूयत एव । या त्वनुभूतिः सात्मख्यातिरेवात्मख्यातिस्तु सम्यग्दर्शनमेव । इति समस्तमेव निरवद्यम्।'- इसका अर्थ स्पष्ट करें। समाधान - उपराक्त पक्तिया का खलासा इसप्रकार ह कि जा शद्धनय क द्वारा अपन