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ॐ नमः सिद्धेभ्यः श्री स्वरूपचन्दजी विरचित चौसठ ऋद्धि पूजा (बृहत् गुर्वावली पूजा)
(दोहा) सारासार विचार करि, तजि संसृतिको भार । धारा धरि निज ध्यान की, भये सिंधु भव पार ॥१॥ भूत भविष्यत कालके, वर्तमान ऋषिराज । तिनके पदको नमन करि, पूज रचों शिव काज ॥२॥
स्तुति
(मदावलिप्तकपोल छन्द) यह संसार असार दुःखमय जानि निरंतर,
विषय-भोग धन धान्य त्यागि सब भये दिगंबर । परपरणति परिहार लगे निजपरणति मांहीं,
___ राग द्वेष मद मोह तणी नाही परछाहीं ॥३॥ जन्म जरा अरु मरण त्रिदोष जु या जग माहीं,
सब जगवासी जीव भ्रमत कछु साता नाहीं। इमि विचारि चितमांहिं धारि संयम अविकारी,
शुक्लध्यान धरि धीर वरी अविचल शिवनारी ॥४॥ षट्कायनिके जीवतणी करुणा प्रतिपालै,
करि चोरी परिहार मृषा वच सबही टालै ।