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... [२४] सुष्ट मिष्ट श्रीफलादि हिरण्य थाल भरों जी। श्री मुनीन्द्र चरण चहोडि मुक्ति अंगना वरोजी ॥ चारणऋद्धि धारी मुनि पूज करूंजी
. पूजकरूं, पूजकरूं, पूजकरूंजी ॥ ॐ ह्रीं चारणऋद्धिधारकसर्वमुनीश्वरेभ्यो मोक्षफलं प्राप्तये फलं निर्व० जलादि द्रव्य लेय हेम थालमें भरें जी। श्रीमुनीन्द्र-चरण चहोडि सर्व ऐनको हरें जी ॥ चारणऋद्धि०॥
ॐ ह्रीं चारणऋद्धिधारकसर्वमुनीश्वरेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहाः।
अथ प्रत्येक पूजा . . (सोरठा) क्रियाचारण नव भेद, ऋद्धि धार जे हैं मुनी। ... जुदे - जुदे निरखेद, पूजों अर्घ चढ़ायके ॥ ॐ ह्रीं नव भेद क्रियाचारणऋद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।
. (चाल छन्द) ... जल ऊपर थलवत् चाले, जल-जन्तु एक नहिं हाले ।
जल चारण मुनिवर जे हैं, तिन पद पूजें शिव ले हैं ॥१॥ ॐ ह्रीं जलचारण ऋद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । धरती से अंगुल च्यारै, ऊंचो तिनको सुविहारै। क्षण में बहु योजन जै हैं जंघाचारण पूजै हैं ॥२॥ ॐ ह्रीं जंघाचारण ऋद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । मकड़ी-तंतूपर चालै, सो तंतु टूटै नहिं । हालै । ते तंतूचारण ऋधिधर, तिन पूजैतें हो शिव-वर ॥३॥ ॐ ह्रीं तंतूचारण ऋद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा ।