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________________ 50 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना जीव मुक्त पर नहीं चिपकते हैं। प्रारब्ध कर्मों के क्षय हो जाने पर जीवनमुक्त विदेहमुक्त हो जाता है। उपनिषद् में क्रम-मुक्ति या क्रमशः मुक्ति का विवरण मिलता है। मुक्ति एकाएक नहीं प्राप्त होती है, अपितु क्रमशः या क्रमिक रूप से प्राप्त होती है। उपनिषद् में मुक्ति को अप्राप्तस्य प्राप्ति नहीं माना गया है; क्योंकि यह आत्मा का निजी गुण है। इसलिए मुक्ति को 'प्राप्तस्य प्राप्ति' कहा गया है। इस प्रसंग की व्याख्या के लिए वृहदारण्यक उपनिषद् में एक राजकुमार का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, जिसका संयोगवश लालन-पालन बचपन से ही एक शिकारी के घर में होता है; पर जो बाद में जान लेता है कि वह राजकमार है। उसी प्रकार ज्ञान की प्राप्ति के उपरान्त बन्ध-आत्मा को अपनी वास्तविक स्थिति का भान होता है। उपनिषद् में मोक्ष की प्राप्ति कर्म के द्वारा नहीं मानी गई है। कर्म में कर्ता और कार्य का भेद निहित है। इसलिए कर्म के द्वारा जीवात्मा का ब्रह्म के साथ एकरूपता का ज्ञान सम्भव नहीं है। मोक्ष की प्राप्ति, उपनिषद् के अनुसार ज्ञान अर्थात् विद्या के द्वारा है। वृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है कि 'ब्रह्म विद्ब्रह्मैव भवति' अर्थात् जो ब्रह्म को जान लेता है, वह स्वयं ब्रह्म हो जाता है। यही कारण है कि नचिकेता यम के द्वारा दिये गये सारे प्रलोभनों को ठुकरा देता है; क्योंकि ये आत्म-ज्ञान की प्राप्ति में बाधक होंगे। ज्ञान की प्राप्ति के लिए उपनिषद् में एक पद्धति की चर्चा हुई है, जिसके तीन चरण हैं - (1) श्रवण-जो व्यक्ति मोक्ष की कामना रखता है, उसे उपनिषद् के सिद्धान्तों का गुरु के आश्रम में जाकर सुनना चाहिए। यह कार्य श्रद्धापूर्वक होना चाहिए। (2) मनन-यह दूसरी सीढ़ी है। मनन की अवस्था में गुरु से प्राप्त उपदेशों पर चिन्तन और विचार करना अपेक्षित है। इस अवस्था में तार्किक प्रक्रिया के द्वारा उपदेशों पर विचार करना वांछनीय है। (3) निदिध्यासन-निदिध्यासन ध्यान का पर्याय है। इस अवस्था में जो ज्ञान प्राप्त हो चुका है, उसे योगाभ्यास के द्वारा पुष्ट बनाने की दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए। उपर्युक्त प्रक्रियाओं के पालन के फलस्वरूप बन्धन ग्रस्त आत्मा मुक्त हो जाती है। इस प्रकार बन्धन ग्रस्त आत्मा की प्रार्थना 'मुझे असत् से
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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