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________________ 48 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना शंकर के माया एवं अविद्या सिद्धान्त के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि शंकर ने इन्हें बौद्ध दर्शन से ग्रहण किया है। यदि यह सत्य नहीं है तो माया सम्बन्धी विचार शंकर के मन की उपज है। दोनों विचार भ्रामक प्रतीत होते हैं। शंकर ने माया और अविद्या सम्बन्धी धारणा को उपनिषद् से ग्रहण किया है। प्रो. राना डे ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक | Constructive survey of Upanisadic Philosophy में यह दिखलाने का प्रयास किया है कि माया और अविद्या विचार का स्रोत उपनिषद् हैं। उपनिषदों में अनेक स्थानों पर माया एवं अविद्या की चर्चा हई है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं - - श्वेताश्वेतर उपनिषद् में कहा गया है कि ईश्वर मायाविन है। माया ईश्वर की शक्ति है, जिसके बल पर वह विश्व की सृष्टि करता है। - छान्दोग्य उपनिषद में कहा गया है कि आत्मा एक चरम तत्त्व है। शेष सभी वस्तुएँ नाम रूप मात्र हैं। - प्रश्न उपनिषद् में कहा गया है कि हम ब्रह्म को तब तक प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक कि हम भ्रम की अवास्तविकता से मुक्त नहीं होते हैं। - वृहदारण्यक उपनिषद में अवास्तविकता की तुलना असत् एवं अन्धकार से की गई है। छान्दोग्य उपनिषद् में विद्या की तुलना शक्ति से तथा अविद्या की तुलना अशक्ति से हुई है। - श्वेताश्वेतर उपनिषद में ईश्वर की उपासना को माया की निवृत्ति के लिए अपेक्षित माना गया है। कहा गया है कि 'हम ईश्वर की उपासना के द्वारा माया से निवृत्ति पा सकते हैं।' - छान्दोग्य उपनिषद् के अनुसार जगत के असत्यों में सत्य तथा अनिश्चितताओं में निश्चित्तता निहित है। माया सत्य पर पर्दा डाल देती है तथा वस्तु के यथार्थ स्वरूप को छिपा देती है। - वृहदारण्यक उपनिषद् में असत् से सत् की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलने की प्रार्थना की गई है। इससे प्रमाणित होता है कि अविद्या को असत्, अन्धकार तथा मृत्यु के तुल्य माना गया है। - मुण्डक उपनिषद् में अविद्या को ग्रन्थि कहा गया है, जिसे खोलने पर ही आत्मा का दर्शन सम्भव है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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