SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 45 वही आत्मा है।' इन्द्र को पुनः शंका हुई। सुषुप्ति पुरुष को किसी प्रकार की अनुभूति नहीं होती है। इसे सुख या दुःख का अनुभव नहीं हो पाता है। यहाँ न ज्ञान है और न संकल्प है। इस अवस्था में आत्मा शून्य के तुल्य प्रतीत होती है। इन्द्र अपनी शंका के निवारण के लिए प्रजापति के पास पहुँचते हैं जो उन्हें पाँच वर्ष और तप करने का आदेश देते हैं। तपस्या की अवधि समाप्त होने के पश्चात् जब इन्द्र प्रजापति के पास पहुँचते हैं, तब प्रजापति सन्तुष्ट होकर उन्हें इस प्रकार उपदेश देते हैं-'वास्तविक आत्मा, आत्मचैतन्य, साक्षी, स्वप्रकाश है। यह स्वतः सिद्ध है यह प्रकाशों का प्रकाश है। यह आत्मा तीन अवस्थाओं का आधार है। जो इस आत्मा को जान लेता है उसकी सारी इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं। उपर्युक्त विवेचन में हम आत्मा की चार अवस्थाओं का विवरण पाते हैं - 1. शारीरिक आत्मा 2. आनुभविक आत्मा 3. विश्वातीत आत्मा 4. निरपेक्ष आत्मा उपनिषदों के अनुसार जीव और आत्मा में भेद है। जीव और आत्मा उपनिषद् के अनुसार एक ही शरीर में अन्धकार और प्रकाश की तरह निवास करते हैं। जीव कर्म के फलों को भोगता है और सुख-दुःख अनुभव करता है। आत्मा इसके विपरीत कूटस्थ है, जीव अज्ञानी है। अज्ञान के फलस्वरूप उसे बन्धन और दुःख का सामना करना पड़ता है। आत्मा ज्ञानी है। आत्मा का ज्ञान हो जाने से जीव दुःख एवं बन्धन से छुटकारा पा जाता है। जीवात्मा कर्म के द्वारा, पुण्य-पाप का अर्जन करता है और उनके फल भोगता है, लेकिन आत्मा कर्म और पाप-पुण्य से परे है। वह जीवात्मा के अन्दर रहकर भी उसके किये हुए कर्मों का फल नहीं भोगता । आत्मा-जीवात्मा के भोगों का उदासीन साक्षी है। . ___ 'जीव और आत्मा दोनों को उपनिषद् में नित्य और अज माना गया है। उपनिषदों में जीवात्मा के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। वह शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि से अलग तथा इनसे परे है। वह ज्ञाता, कर्ता तथा भोक्ता है। उसका पुनर्जन्म कर्मों के अनुसार नियमित होता है। जीवात्मा अनन्त ज्ञान से शून्य है।'18 जीवात्मा की चार अवस्थाओं का संकेत उपनिषद् में है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy