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44 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना सकता, जिसकी अनुभूति स्वप्न या स्वप्न रहित निद्रा अवस्था में होती है। आत्मा उन सब में रहने के बावजूद भी उससे परे है।
छान्दोग्य उपनिषद् में विवेचित आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं का विवरण अपेक्षित है। प्रजापति ने आत्मा की विशेषताओं का विवरण करते हुए कहा है-'आत्मा जरा से मुक्त है रोग और मृत्यु से मुक्त है। पाप से मुक्त है। आत्मा शोक, भूख, प्यास से मुक्त है।" प्रजापति ने यथार्थ आत्मा को जानने के लिए लोगों को प्रेरित किया। देवताओं ने अपने प्रतिनिधि के रूप में इन्द्र को तथा दानवों ने अपने प्रतिनिधि के रूप में विरोचन को आत्मा की जानकारी के लिए भेजा।
प्रजापति ने उन दोनों को बत्तीस वर्ष तक कठिन तपस्या के उपरान्त, आत्मज्ञान के लिये आने का आदेश दिया। तपस्या की अवधि समाप्त होने के बाद दोनों प्रजापति के पास आये, तब प्रजापति ने इस प्रकार उपदेश देते हुए कहा-'जल में झाँकने पर या दर्पण में देखने पर, जो पुरुष दिखाई देता है, वही आत्मा है। विरोचन इस मत से सन्तुष्ट हो गये
और दानव-वर्ग में जाकर उन्होंने प्रचार किया कि जीवित शरीर ही आत्मा है, परन्तु इन्द्र को यह मत सन्तोषजनक नहीं लगा। यदि आत्मा शरीर की छाया मात्र है; तब शरीर के अन्धा, लँगड़ा, लूला होने पर आत्मा को भी अन्धा, लँगड़ा, लूला होना होगा। शरीर के अन्त हो जाने पर आत्मा का भी नाश होगा। इन्द्र अपनी शंका के समाधान हेतु प्रजापति के पास पहुंचे। प्रजापति ने इन्द्र को बत्तीस वर्ष तपस्या के बाद आने का आदेश दिया।
तदनन्तर प्रजापति ने इस प्रकार उपदेश दिया-'स्वप्न के समय जो पुरुष स्वप्न देखता है, वही आत्मा है। स्वप्न-दृष्टा अर्थात् जो पुरुष स्वप्न में मुक्त विचरण करता हुआ दिखाई देता है, वही आत्मा है।' इन्द्र को पुनः सन्देह हुआ। यद्यपि स्वप्न-पुरुष शरीर के दोषों से प्रभावित नहीं होता फिर भी वह भयभीत तथा रोता हुआ प्रतीत होता है। ऐसी आत्मा का ज्ञान . हितकर नहीं प्रतीत होता है।
इन्द्र अपनी शंका के समाधान हेतु पुनः प्रजापति के पास पहुँचते हैं जो उन्हें बत्तीस वर्ष और तप करने का आदेश देते हैं। तपस्या के उपरान्त जब इन्द्र प्रजापति के पास पहुँचते हैं, तब प्रजापति इस प्रकार उपदेश देते हुए कहते हैं- जो सुषुप्ति-पुरुष स्वप्न रहित प्रगाढ़ निद्रा में लिप्त रहता है,